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लोहे की कील बनाने की फैक्ट्री लगाने से जितेन्द्र पिछोड़े के अच्छे दिन आ गये

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दूसरों के यहां काम करने वाला जितेन्द्र अब अन्य लोगों को रोजगार दे रहा है


ब्यूरोचीफ
सुनील खोब्रगढ़े-

बालाघाट- जितेन्द्र पिछोड़े ने गरीबी के दिन भी देखे हैं और आगे बढ़ने के लिए कठिन संघर्ष भी किया है। मुश्किल राहों से चलने के बाद जितेन्द्र के परिवार के अब अच्छे दिन आ गये हैं। कभी दूसरों के यहां काम करने वाला जितेन्द्र अब दूसरों को काम देने वाला बन गये है। यह सब संभव हुआ है सरकार की प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम योजना से। इस योजना का लाभ लेकर जितेन्द्र ने लोहे की कील बनाने की फैक्ट्री लगा ली है और इस फैक्ट्री से उसे अच्छी खासी आय होने लगी है।
बालाघाट जिला मुख्यालय से लगभग 08 किलोमीटर की दूरी पर ग्राम कुम्हारी है। 31 वर्षीय जितेन्द्र पिछोड़े इसी ग्राम के निवासी है। गरीब परिवार के जितेन्द्र ने किसी तरह बीए की पढ़ाई पूरी की और कुछ कमाने की सोचने लगा। इसी चक्कर में वह गुजरात के राजकोट पहुंच गया और वहां पर लोहे की कील बनाने वाली फैक्ट्री में काम करने लगा। राजकोट की फैक्ट्री में काम करते हुए उसने लोहे की कील बनाने की सारी बारिकियों को अच्छे से सीख लिया था। जितेन्द्र को लगने लगा कि ऐसी फैक्ट्री तो वह भी खोल सकता है। उसने मन में ठान लिया कि वह अपनी स्वयं की फैक्ट्री खोलेगा और राजकोट की फैक्‌ट्री से काम छोड़कर अपने गांव वापस आ गया।
जितेन्द्र ने अपने गांव आने के बाद लोहे की कील बनाने की फैक्ट्री लगाने के लिए प्रयास शुरू कर दिये। लेकिन पूंजी की समस्या आड़े आने लगी थी। ऐसे में उसे समाचार पत्रों के माध्यम से पता चला कि प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम के अंतर्गत युवाओं को स्वयं का उद्योग या व्यवसाय लगाने के लिए ऋण मिलता है। जितेन्द्र ने जिला व्यापार एवं उद्योग केन्द्र बालाघाट से सम्पर्क कर 25 लाख रुपये के ऋण के लिए आनलाईन आवेदन कर दिया। सेन्ट्रल बैंक आफ इंडिया शाखा भटेरा-खैरी ने सारी औपचारिकतायें पूरी करने के बाद जितेन्द्र को इस योजना में 25 लाख रुपये का ऋण स्वीकृत कर दिया। बैंक से ऋण मिलते ही जितेन्द्र ने ग्राम कुम्हारी वार्ड नंबर-10 में लोहे की कील बनाने की फैक्ट्री लगाने के लिए काम चालू कर दिया और 24 दिसंबर 2022 को उसकी फैक्ट्री में लोहे की कील बनाने का काम प्रारंभ हो गया है।
जितेन्द्र ने चर्चा के दौरान बताया कि उसे बैंक से मिले ऋण की 15 लाख रुपये की राशि से फैक्ट्री के लिए मशीने एवं अन्य उपकरण लगाये हैं। शेष 15 लाख रुपये की राशि कच्चे माल के लिए फिक्स डिपाजिट में रखा है। जैसे जैसे उसका व्यवसाय बढ़ेगा उसे कच्चे माल की अधिक जरूरत होगी। उसकी फैक्ट्री में लोहे की कील बनना प्रारंभ हो गया है। ढाई माह के अल्प समय में ही उसकी फैक्ट्री में बनी लोहे की कील बालाघाट, नैनपुर एवं मंडला में सप्लाय होने लगी है। अभी उसे हर माह लगभग 30 हजार रुपये मासिक की आय होने लगी है। पहले उसके पिता बिल्डिंग वर्क में मजूदरी का काम करते थे। लेकिन अब उसकी फैक्ट्री में हाथ बंटाते है। पहले उसे दूसरों के यहां काम करना पड़ता था, लेकिन अब वह दूसरे लोगों को रोजगार देने में सक्षम हो गया है। उसकी फैक्ट्री से दो-तीन अन्य लोगों को भी रोजगार मिल रहा है।