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‘इस तरह’ करें कलश स्थापना, ‘यह’ है शुभ मुहूर्त, माँ होंगी प्रसन्न, जानें 9 दिनों तक कैसे करें पूजा

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नौ दिनों का नवरात्रि त्योहार 29 सितम्बर से शुरू हो रहा है. इस दौरान हर दिन माता के एक नए रूप की आराधना की जाती है. देशभर में माता के पांडाल सजाकर माता की पूजा-अर्चना की जाती है. हर जगह गरबों की धूम रहती है. लेकिन इन सभी की शुरुआत होती है कलश स्थापना के बाद. जी हाँ, हमारे धर्म में माना जाता है कि कलश में माता जी निवास करती हैं. इन्ही की पूजा-अर्चना से हम माता की कृपा दृष्टी पा सकते हैं. इसलिए यह जानना महत्वपूर्ण हो जाता है, कि कलश स्थापता कब और कैसे की जाए? इसलिए हम आपको बताने जा रहे हैं इससे संबंधित कुछ खास जानकारियां..

मुहूर्त
नवरात्रि के पहले दिन अर्थात 29 सितम्बर को कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त सुबह 6 बजकर 16 मिनट से लेकर शाम 7 बजकर 40 मिनट तक है. अगर किसी वजह से जो भक्त सुबह कलश स्थापना नहीं वे दिन में 11 बजकर 48 मिनट से लेकर 12 बजकर 35 मिनट के दौरान कलश स्थापना कर सकते हैं. यह समय शुभ बताया जा रहा है.

ऐसे करें कलश स्थापना
बता दें कि नवरातत्री के पहले दिन जो घट स्थापना की जाती है उसे ही कलश स्थापना भी कहा जाता है. कलश स्थापना करने के लिए नदी की रेत का उपयोग करना चाहिए. इस रेत में जौ डालने के बाद कलश में गंगाजल, लौंग, इलायची, पान, सुपारी, रोली, कलावा, चंदन, अक्षत, हल्दी, रुपया, पुष्पादि डालें. इसके बाद ‘ॐ भूम्यै नम:’ कहते हुए कलश को 7 अनाज के साथ रेत के ऊपर स्थापित कर दें. कोशिश करें कि कलश की जगह पर नौ दिनों तक अखंड दिया जलाएं. ज्योतिषियों का मानना है कि नवरात्र में पूजा की सामग्री अमावस्या की तिथि खत्म होने के बाद ही खरीदना शुभकारी है.

यह सामग्रियां जरूरी
माता के सभी 9 रूपों की आराधना करने के लिए विभिन्न सामग्रियों की आवश्यकता पडती है. इनमें माता की मूर्ति, चौकी पर बिछाने के लिए लाल या पीला कपड़ा, माता की लाल चुनरी, कलश, ताजा आम के पत्ते, फूल माला, एक जटा वाला नारियल, पान के पत्ते, सुपारी, इलायची, लौंग, कपूर, रोली, सिंदूर, मौली (कलावा), चावल, घी, रुई या बत्ती, हवन सामग्री, पांच मेवा, कपूर, जवारे बोने के लिए मिट्टी का बर्तन, माता के श्रंगार सामग्री आदि शामिल हैं.

पूजा-अर्चना में इन बातों का रखें ध्यान

– नौ दिनों तक माता का व्रत रखें. अगर शक्ति न हो तो पहले, चौथे और आठवें दिन का उपवास अवश्य करें.

– पूजा स्थान में दुर्गा, लक्ष्मी और मां सरस्वती के चित्रों की स्थापना करके फूलों से सजाकर पूजन करें.

– नौ दिनों तक मां दुर्गा के नाम की ज्योत जलाएं.

– मां के मंत्र का स्मरण जरूर करें- ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै’

– इन दिनों में दुर्गा सप्तशती का पाठ अवश्य करें.

– मां दुर्गा को तुलसी दल और दूर्वा चढ़ाना मना है.

– पूजन में हमेशा लाल रंग के आसन का उपयोग करना उत्तम होता है. आसन लाल रंग का और ऊनी होना चाहिए.

– पूजा के समय लाल वस्त्र पहनना शुभ होता है. वहीं इस दौरान लाल रंग का तिलक भी लगाएं.

– कलश की स्थापना शुभ मुहूर्त में करें और कलश का मुंह खुला न रखें.

– पूजा करने के बाद मां को दोनों समय लौंग और बताशे का भोग लगाएं.

– मां को सुबह शहद मिला दूध अर्पित करें. पूजन के पास इसे ग्रहण करने से आत्मा व शरीर को बल प्राप्ति होती है.

– आखिरी दिन घर में रखीं पुस्तकें, वाद्य यंत्रों, कलम आदि की पूजा जरूर करें.

इस-इस दिन करें मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की उपासना

– 29 सितम्बर, प्रतिपदा-नवरात्र के पहले दिन घट या कलश स्थापना की जाती है. इस दिन मां के शैलपुत्री स्वरूप की पूजा की जाती है.

– 30 सितम्बर, द्वितीया-नवरात्र के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा का विधान है.

– 01 अक्तूबर, तृतीया-नवरात्र के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा की जाती है.

– 02 अक्तूबर, चतुर्थी-नवरात्र के चौथे दिन मां के कूष्मांडा स्वरूप की पूजा की जाती है.

– 03 अक्तूबर, पंचमी-नवरात्र के 5वें दिन मां स्कंदमाता की पूजा करने का विधान है.

– 04 अक्तूबर, षष्ठी-नवरात्र के छठें दिन मां कात्यायनी की पूजा होती है.

– 05 अक्तूबर, सप्तमी-नवरात्र के सातवें दिन कालरात्रि की पूजा होती है.

– 06 अक्तूबर, अष्टमी-नवरात्र के आठवें दिन माता के भक्त महागौरी की आराधना करते हैं.

– 07 अक्तूबर, नवमी-नवरात्र का नौवें दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा और नवमी हवन करके नवरात्र परायण किया जाता है.

– 08 अक्तूबर, दशमी-दुर्गा विसर्जन, विजयादशमी