Home समाचार Super Sunday की तैयारी और स्पीकर से घरों में रहने की अपील...

Super Sunday की तैयारी और स्पीकर से घरों में रहने की अपील से Corona के आगे जीत है!

30
0

Corona….Corona…Corona- जहां सुनो, बस एक ही बात लोगों के जुबान पर चढ़ गई है। एक ऐसा विश्वव्यापी खतरा जिसको लेकर 160 से ज्यादा देश आज चिंतित नजर आ रही है। भारत भी इससे अछूता नहीं है। हो भी क्यों ना- देश भर में इस वायरस से 4 मौतें हुई है और 292 लोग संक्रमित हो गए है। केंद्र सरकार से लेकर राज्य सरकार तक कोरोना वायरस से लड़ने के लिये अपने-अपने तरीके से पुरजोर प्रयास कर रही है। इसमें कोई संदेह नहीं है।

पीएम ने दिखाई दूरदर्शिता
खासकरके पीएम नरेंद्र मोदी ने जब राष्ट्र के नाम संबोधन में कोरोना वायरस खतरे की व्यापकता पर चर्चा की तो देश ने बहुत ही गंभीरता से लिया। पीएम ने लोगों से अपील की है कि 22 मार्च को सुबह 7 बजे से लेकर रात 9 बजे तक ‘जनता कर्फ्यू’ को खुद से लागू करें। जो उनकी परिपक्वता को भी दर्शाता है। उन्होंने जिस तरह से इस महामारी के संकट के समय आगे बढ़कर लोगों का डटकर मुकाबला करने और कभी न घबराने की अपील की वो भी काबिलेतारिफ है।

स्पीकर से घरों पर रहने की अपील

ऐसे में आज जब मैंने अपने मौहल्ले में लाउडस्पीकर में यह बोलते हुए सुना कि ‘जिसे जरुरी हो तभी घर से निकलें अन्यथा घर पर ही रहें’ ऐसा आज लगभग दिल्ली के हर गली में लोगों से अपील की जा रही है जो दिखाता है कि सरकार कितनी सजग हो गई है। हालांकि यह देखना दिलचस्प होगा कि पीएम मोदी के इस अपील पर लोग Super Sunday को कैसा Response देते है? अगर यह जनता कर्फ्यू सफल रहा तो निश्चित रुप से कोरोना वायरस पर बहुत बड़ी जीत हासिल होगी। इसमें कोई दो राय नहीं है।

आगामी संडे को सुपर बनाने में जनता की भागिदारी जरुरी
हालांकि दिल्ली में जरुरी यात्रा के समय मेट्रो,लिफ्ट और Escalator को लेकर सावधानी बरतने की सलाह भी दी गई है। यहीं नहीं 22 मार्च को मेट्रो, ट्रेनें और हवाई उड़ान भी बंद रखने की घोषणा की जा चुकी है। लेकिन केंद्र सरकार को कोरोना वायरस से लड़ने के लिये ऐसे प्रयास पर ही रुकना नहीं चाहिये। महज Self Isolation तक सीमित नहीं रहा जा सकता। सरकार को चाहिये कि अगर 1 दिन के जनता कर्फ्यू का सकारात्कमक असर नजर आता है तो इसी तरह के कदम ओर कौन-सा हो सकता है जिससे तत्काल उठाना चाहिये। जरुरी नहीं है कि बार-बार जनता कर्फ्यू को ही लागू किया जाएं। ऐसे अनेक छोटे-छोटे कदम हो सकते है जिससे आम जन को प्रोत्साहित किया जा सकता है। इसके साथ ही लोगों को अपनी नौकरी और व्यापार को लेकर असुरक्षा ज्यादा रहती है। जिसको लेकर भी अनेक राज्य सरकारों ने कदम उठाये है। जो प्रशंसनीय है।

सरकार को करने होंगे वायदे पूरे
सवाल उठता है कि लोगों से वायदे तो किये जाते है लेकिन पूरे कितने होंगे- इस पर प्रश्नचिन्ह है। इसकी लंबी फेहरिश्त है- केंद्र सरकार हो या राज्य सरकारों ने अपने वायदे को बाद में अमल कम ही किया हो। कहने की जरुरत नहीं कि चुनाव के समय किसानों से कर्जमाफी की घोषणा तो की जाती है लेकिन सत्ता में आते ही फिर महज कुछेक लोगों तक योजना का लाभ पहुंचा कर ही इतिश्री कर लिया जाता है। सरकार को चाहिये कि लोगों के भीतर के असुरक्षा को दूर करने के लिये गंभीर प्रयास करने होंगे।

नौकरी और व्यापार को लेकर लोगों में असुरक्षा
यह मानकर चलिये कि यदि लोगों ने साफ-सफाई को बड़े पैमाने पर अपना लिया और उनके भीतर नौकरी तथा व्यापार के घाटे को लेकर असुरक्षा का भाव सही तरीके से खत्म करने में सरकार को सफलता मिल गई तो कोरोना वायरस से लड़ने में भारत को बहुत बड़ी कामयाबी मिलेगी। कम से कम केंद्र सरकार और सभी राज्य सरकार अगले 15 दिन के लिये भी लोगों के नौकरी और व्यापार को लेकर असुरक्षा को खत्म करने के लिये व्यापक कदम उठाती है तो निश्चित रुप से कोरोना के आगे जीत है।

खर्च में कटौती करके आमजन दे सकते हैं योगदान
लेकिन ताली एक हाथ से नहीं बजती है यह देश की जनता को भी समझना होगा। जब दुनिया भर में कोरोना वायरस को लेकर होहल्ला मचा हुआ है तो ऐसे में उसके गंभीर प्रभाव Economy पर पड़ना स्वाभाविक है। ऐसे मुश्किल हालात में ‘खर्च में कटौती’ को लेकर आम जन को नए सिरे से सोचना होगा जो जनता कर्फ्यू का बेहतर विकल्प हो सकता है। पीएम का सुझाव स्वागत योग्य है- ‘जमाखोरी से हम सबको बचना चाहिये’ कारण सीमित संसाधन का लाभ पूरे देश तक सही तरीके से वितरित हो- यह जागरुकता भी देश तक संदेश जाएं तो बेहतर होगा।

पड़ोस के दो घरों की सभी करें चिंता
इसके अलावा हम अपने पड़ोस के 2 घरों की चिंता करें- उनके सुख में शामिल होने का वक्त तो अभी नहीं है लेकिन दुःख को जरुर बांटा जा सकता है। साथ ही अपने पड़ोस के 2 घरों के लोगों को साफ-सफाई और संक्रमित होने पर सही सुझाव और उन्हें अस्पतालों तक पहुंचाने में भी सहभागी बनें तो बेहतर होगा। यह स्पष्ट है कि केवल सरकार अपने कंधों पर इतना बड़ा बोझ नहीं उठा सकती है। इसके लिये जनता को भी आर्थिक बोझ को उठाने के लिये तैयार रहना चाहिये।