Home जानिए अमेरिकी राष्ट्रपति का चुनाव ऐसे होता है, दुनिया का सबसे शक्तिशाली इंसान...

अमेरिकी राष्ट्रपति का चुनाव ऐसे होता है, दुनिया का सबसे शक्तिशाली इंसान चुनने में लगता है एक साल..जानिए प्रक्रिया

32
0

अमेरिका के राष्ट्रपति चुनने की लंबी प्रक्रिया शुरू हो चुकी है, इसी साल 3 नवंबर को अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव होंगे। अमेरिकी राष्ट्रपति को दुनिया का सबसे शक्तिशाली इंसान माना जाता है। इस साल अमेरिका का 46वां राष्ट्रपति चुना जाना है। वर्तमान में यहां रिपब्लिकन पार्टी के डोनाल्ड ट्रंप राष्ट्रपति हैंं। लेकिन अब आगामी चुनाव में देखना यह होगा कि अमेरिकी जनता वर्तमान रिपब्लिकन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और उपराष्ट्रपति माइक पेंस को दोबारा चुनेगी या फिर कोई डेमोक्रेट अमेरिका का अगला राष्ट्रपति होगा।

अमेरिका के 45वें राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप दोबारा राष्ट्रपति चुने जाने के लिए अपना प्रचार अभियान शुरू कर चुके हैं। ऐसे में यह जानना कि यहां राष्ट्रपति का चुनाव कैसे होता है काफी दिलचस्प होगा। अमेरिकी राष्ट्रपति पद के नामांकन के लिए मुख्यत: तीन योग्यताओं की मांग होती है, उम्मीदवार की उम्र कम से कम 35 साल होनी चाहिए, उसे पैदाइशी रूप से अमेरिका का ‘नेचुरल सिटीजन’ होना चाहिए या फिर उसने देश में कम से कम 14 साल से निवास कर रहा हो। अगर कोई व्यक्ति ये अर्हताएं पूरी करता है तो फिर वो अपना नामांकन करा सकता है। चुनाव में शामिल होने के लिए दस्तावेज अमेरिका के फेडरल इलेक्शन कमीशन में जमा करने होते हैं। ये सारी प्रक्रिया चुनाव की तिथि से एक साल पहले ही पूरी हो जानी चाहिए अन्यथा दावेदारी नहीं मानी जाएगी।

राष्ट्रपति चुनाव में प्राइमरी इलेक्शन इस बार फरवरी से जून महीने तक होंगे, प्राइमरी इलेक्शन अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के सबसे महत्वपूर्ण और शुरुआती पड़ाव होते हैं, अलग-अलग राज्यों में प्राइमरी इलेक्शन के द्वारा राजनीतिक पार्टियां ये पता लगाती हैं कि उनका सबसे मजबूत दावेदार कौन है? प्राइमरी इलेक्शन के जरिए ही डिस्ट्रिक्ट प्रतिनिधि भी चुने जाते हैं, राष्ट्रपति पद का मजबूत कैंडिडेट पहचानने के लिए पार्टी के पास प्राइमरी के अलावा कॉकस की प्रक्रिया भी होती है। जहां प्राइमरी इलेक्शन में आम जनता की भागीदारी होती है वहीं कॉकस की प्रक्रिया में पार्टी के पारंपरिक वोटर और कार्यकर्ता ही हिस्सा लेते हैं जो शीर्ष नेतृत्व को प्रेसिडेंशियल कैंडिडेट चुनने में मदद करते हैं।

प्राइमरी इलेक्शन के जरिए जो प्रतिनिधि चुने जाते हैं दूसरे चरण में वो ही राष्ट्रपति पद के कैंडिडेट का चयन करते हैं, इसी दौर में ये तय हो जाता है कि दोनों बड़ी राजनीतिक पार्टियों के उम्मीदवार कौन होंगे, ये ही वो दौर है जब नामांकन की प्रक्रिया होती है, ये दौर इस साल जून महीने के बाद शुरू होगा।

नामांकन के बाद फिर जबरदस्त चुनाव प्रचार का दौर चलता है जिसमें फंड जुटाने की कवायद भी की जाती है, गौरतलब है कि अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव को दुनिया के सबसे महंगे चुनावों में भी गिना जाता है, साल 2009 में जब बराक ओबामा पहले अश्वेत अमेरिकी राष्ट्रपति बने थे तब उनके पूरे चुनाव अभियान पर एक किताब भी आई थी, चुनाव प्रचार के दौरान दोनों दलों के प्रत्याशियों के बीच डिबेट का आयोजन भी टीवी चैनलों पर होता है, प्रत्याशी उन राज्यों पर ज्यादा ध्यान केंद्रित करते हैं जहां के वोटर फ्लोटिंग होते हैं, यानी जो किसी भी पार्टी के परंपरागत वोटर नहीं हैं।

आम चुनावों के बाद शुरू होती है इलेक्टोरल कॉलेज की भूमिका, पूरे देश के मतदाता अपने-अपने राज्यों में इलेक्टर का चुनाव करते हैं, ये इलेक्टर दोनों पार्टियों के होते हैं। इनकी कुल संख्या 538 होती है, इसे इलेक्टोरल कॉलेज भी कहा जाता है। इसी इलेक्टोरल कॉलेज के सदस्यों की वोटिंग के जरिए आखिरी में तय होता है कि राष्ट्रपति कौन बनेगा। दुनिया के अलग-अलग देशों में सुप्रीम पद पर बैठने की समयसीमा तय होती है, अमेरिका में ये सीमा दो बार पद पर बैठने की है, यानी कोई भी नेता इस पद पर दो बार काबिज हो सकता है।