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लोन घोटाले के बाद मशीन खरीदी और आउटसोर्सिंग फर्जीवाड़े की जांच…

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डीकेएस के 95 करोड़ लोन घोटाले की जांच पूरी होने के बाद अब एसआईटी मशीन खरीदी और आउटसोर्सिंग की जांच शुरू करेगी। एसआईटी ने डीकेएस के घोटाले की जांच को तीन पार्ट में बांटा है, अभी पहले पार्ट की जांच पूरी हुई है। बाकी दो पार्ट की जांच होनी है। जांच में शामिल पुलिस अफसरों ने बताया कि तत्कालीन अधीक्षक डॉ. पुनीत ने कर्ज लेने के लिए हड़बड़ी की। बिना वर्क ऑर्डर जारी किए तत्कालीन अंबेडकर अस्पताल का काम देख रहे सीए प्रशांत देशमुख को कर्ज के लिए दस्तावेज और बैलेंस शीट तैयार करने के निर्देश दिए थे। बिना वर्क ऑर्डर के देशमुख ने बैलेंस सीट तैयार करने से मना कर दिया तो उसके फर्जी हस्ताक्षर कर दिए।

जांच में ये भी पता चला है कि अस्पताल के बैंक खाते में कर्ज के लिए मर्जिंन मनी भी नहीं थी। अस्पताल की मशीनों के लिए जितना कर्ज मांगा जा रहा था उसका न्यूनतम 30 फीसदी अस्पताल के खाते में होना था। लोन का यही का नियम है, लेकिन खाते में सिर्फ 7 करोड़ ही थे। सरकार ने अस्पताल के लिए 23 करोड़ दिए, लेकिन वह पैसा अस्पताल के खाते में ट्रांसफर नहीं हुअा क्योंकि वह कोषालय में था। डॉ. गुप्ता ने कोषालय के पैसे को अस्पताल के खाते में दिखाते हुए बैलेंस शीट तैयार करवा ली। उसमें सीए देशमुख के फर्जी हस्ताक्षर किए। उसी फर्जी दस्तावेज के आधार पर बैंक से कर्ज लिया। बैंक ने भी अधूरे दस्तावेज पर कर्ज जारी कर दिया। पुलिस के अनुसार कर्ज घोटाला कुल 95 करोड़ रुपए का है। पुलिस की प्रारंभिक पड़ताल में खुलासा हुआ है कि अस्पताल के लिए जो मशीन खरीदी गई है। उसमें नियम शर्तों का पालन नहीं किया गया है। अपने करीबी लोगों को डॉ. गुप्ता ने रेवड़ी की तरह अलग-अलग काम का ठेका दे दिया। 

इसी तरह से 11 लोगों की अस्पताल में आउट सोर्सिंग की गई। जबकि इसके लिए सरकार ने अनुमति की जरूरत थी। उसके बाद टेंडर होना था। अस्पताल में एमआरआई मशीन की खरीदी में भारी गड़बड़ी हुई है। इसका संचालन करने वाली कंपनी को हर महीने लाखों रुपए भुगतान किया जा रहा था। बेवजह भारी संख्या में सुरक्षा गार्डों की भर्ती की गई थी, जबकि इतनी जरूरत नहीं थी। अंबेडकर अस्पताल से डीकेएस में मरीज को लाने-ले जाने के लिए ही हर महीने 27 लाख से ज्यादा खर्च किया जा रहा था। इसके लिए 13 एंबुलेंस रखे थे। जबकि दोनों अस्पताल के बीच ज्यादा दूरी नहीं थी।

धमकी देकर कराए गए खरीदी दस्तावेज में हस्ताक्षर
पुलिस ने घोटाले में 54 लोगों को गवाह बनाया है। इसमें अस्पताल के डॉक्टर से लेकर स्टाफ और उनसे जुड़े लोग शामिल है। पुलिस क्रय समिति में शामिल तीन डॉक्टरों को सरकारी गवाह बनाने की तैयारी कर रही है। उनका धारा 164 के बयान के लिए कोर्ट में अर्जी लगाई है। जल्द ही तीनों डॉक्टरों का कलमबद्ध बयान दर्ज किया जाएगा। पुलिस की पड़ताल में सामने आया है कि डॉ. पुनीत अपने पद का दुरुपयोग किया। उनकी तरफ से स्टाफ को धमकी देने की बात भी सामने अाई है। वे उनसे चर्चा नहीं करते थे, सीधे दस्तावेज में हस्ताक्षर कराते थे, इसलिए क्रय समिति के लोगों ने दस्तावेज में बिना विरोध किए हस्ताक्षर कर दिए। कमेटी की बैठक लिए बिना ही आदेश जारी किया होना बताया गया।