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अयोध्या मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में 32वें दिन की सुनवाई आज; ASI की रिपोर्ट पर जारी रहेगी बहस

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अयोध्या मामले (Ayodhya Case) को लेकर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में 32वें दिन की सुनवाई आज होगी. आज भी पुरातत्व विभाग (ASI) की रिपोर्ट के खिलाफ मुस्लिम पक्ष की वकील मीनाक्षी अरोड़ा की ओर से बहस जारी रहेगी. बुधवार को मुस्लिम पक्ष के वकील जफरयाब जिलानी ने अपने बयान से पलटते हुए कहा था कि सुन्नी वक्फ बोर्ड राम चबूतरे को श्रीराम का जन्मस्थान नहीं मानता है. हमारा यह कहना है कि हिंदू पक्ष राम चबूतरे को श्रीराम का जन्मस्थान मानता रहा है और इस मामले में डिस्ट्रिक्ट ज़ज की टिप्पणी के खिलाफ हम नहीं जा रहे हैं. सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड के वकील जफरयाब जिलानी दरअसल, बुधवार को सीधे तौर पर राम चबूतरे को श्रीराम जन्मस्थान मानने से इंकार करते रहे, लेकिन हकीकत यह है कि उन्होंने डिस्ट्रिक्ट जज के उस फैसले को कभी चुनौती नहीं दी, जिसमें जज ने रामचबूतरे को श्रीरामजन्मस्थान मानने की हिंदू पक्ष की आस्था को मान्यता दी थी. फैजाबाद के डिस्ट्रिक्ट कोर्ट का यह फैसला 18 मई 1986 को आया था. तब महंत रघुबर दास ने विवादित ज़मीन पर श्री राममंदिर के निर्माण को लेकर अर्जी दायर की थी. रघुबर दास ने फैजाबाद सब जज के 24 दिसंबर 1885 के फैसले को चुनौती दी थी. डिस्ट्रिक्ट जज खुद विवादित जगह पर गए और उसके बाद उन्होंने फैसला दिया था.

18 मई 1986 को दिए अपने फैसले में डिस्ट्रिक्ट जज ने कहा कि अपने आप में यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि हिंदुओं के लिए इतनी पवित्र जगह पर बाबरी मस्जिद बनाई गई, लेकिन यह 356 साल पुरानी बात हो चुकी है. अब उस नुकसान की भरपाई होना मुश्किल है. ज़्यादा से ज़्यादा यब यथास्थिति बरकरार रखने का आदेश दिया जा सकता है. इस फैसले में कोर्ट ने कहा था कि रामचबूतरे को हिंदू श्रीराम का जन्मस्थान मानते आए हैं और एक रेलिंग रामचबूतरे को मस्जिद से अलग करती है.मुस्लिमों ने 1986 के इस फैसले में रामचबूतरे को श्रीराम का जन्मस्थान मानने की टिप्पणी को कभी किसी अदालत में चुनौती नहीं दी और उसके बाद से (1986 से) रामचबूतरे पर हिन्दुओं का कब्जा रहा है.

ज़फरयाब जिलानी ने कहा था कि विवादित ढांचे के अंदर सबसे पहले प्रवेश करने वाला शख्स एक सिख था, जिसने 1858 में अंदरुनी हिस्से में झंडा भी लहराया था. दरअसल, जस्टिस एस ए बोबड़े ने जिलानी से मस्जिद के अंदर हिंदुओ के घुसने और पूजा करने के दावे पर सवाल किए थे. जस्टिस बोबड़े ने जिलानी से पूछा था कि क्या मस्जिद बनने बाद 1855 से पहले हिंदुओं ने बाउंड्री के अंदर जाकर पूजा करने की कोशिश की.जिलानी ने जवाब दिया था कि ऐसा नहीं है.1865 में ज़मीन के बाहरी हिस्से यानि रामचबूतरे पर हिंदू पूजा करने लगे.लेकिन 1858 में जिस शख्स ने विवादित ढांचे के अंदर सबसे पहले एंट्री की, वो एक सिख था. उन्होंने अंदर घुसकर झंडा लहराया था. इस पर जस्टिस बोबड़े ने टिप्पणी की थी कि सिख भी श्रीराम में आस्था रखते हैं. सिख धर्म की शिक्षाओं में उनका भी उल्लेख है. सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील ज़फरयाब जिलानी ने कहा था कि ऐसा कोई दस्तावेज नहीं है, जिससे साबित हो कि बाबरी मस्ज़िद के भीतर वाले हिस्से में श्रीराम का जन्मस्थान है.

उधर, सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष की वकील मीनाक्षी अरोड़ा से कहा था कि पुरातत्व टीम ने अपना काम कोर्ट के आदेश पर किया था. उन्हें एक तरह से इस काम के लिए कमिश्नर नियुक्त किया गया था. अगर आपको पुरातत्व टीम की रिपोर्ट पर एतराज था तो आपने हाई कोर्ट में उन्हें गवाही के लिए बुलाए जाने की मांग क्यों नहीं की? आपको पूरा अधिकार था कि उनसे कोर्ट में बुलाकर पूछताछ करते लेकिन आपने ऐसा नहीं किया. कोर्ट का सवाल था कि जब मुस्लिम पक्ष ने हाई कोर्ट में चल रहे मुकदमे के दौरान एविडेंस एक्ट के तहत रिपोर्ट को रिकॉर्ड पर लिए जाने पर आपत्ति दर्ज नहीं करवाई, तो अब अपील के दौरान उसकी बातों को क्यों सुना जाए? मीनाक्षी अरोड़ा ने कोर्ट से इस पर जवाब देने के लिए गुरुवार तक समय मांगा था.