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छत्तीसगढ़ : डिपो के कर्मचारियों का कमाल, रेलवे के कबाड़ से बना दी नई बोगी

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कहते हैं जब राहें मुश्किलों से भरी हों तो इंसान उससे पार पाने के लिए नए-नए प्रयोग करने में जुट जाता है। आखिकार खुद की इच्छा शक्ति की बदौलत चमत्कार कर बैठता है। कुछ ऐसा ही हुआ मंडल के भिलाई डिपो में, जहां रेलवे कर्मचारियों ने अपने इंजीनियर के साथ मिलकर जुगाड़ तकनीक खोज डाली। वे रेलवे के कबाड़ से नए मालगाड़ी के नए वैगन तैयार कर लिये। इसके लिए उन्होंने एक नहीं बल्कि 20 से अधिक बार प्रयोग किए। उन्होंने अपनी जुगाड़ तकनीक को बोगी साईफ्रेम फिक्सर नाम दिया है।

इसके मास्टर माइंड थे, भिलाई डिपो के वरिष्ठ अनुभाग इंजीनियर बलाई सील। इन्होंने अपनी टीम के सदस्य जी राजेश, चंदू, श्रीनाथ बाबू, रेवा राम, राम रतन के साथ अब डिपो में कबाड़ से नए वैगन बनाने के लिए एक अलग से अनुभाग भी बना लिया है।

इनके कारनामे की खबर डीआरएम कौशल किशोर को लगी तो वे इंजीनियरिंग शाखा के सदस्यों के साथ डिपो में पहुंचे। उन्होंने डिपो में इस तकनीक से नए वैगन बनाने के लिए हरी झंडी दे दी। इसके साथ ही मंडल भिलाई के इस नए अविष्कार की सूचना भारतीय रेलवे बोर्ड को भेज दिया है। मंडल के मुताबिक जल्द ही इस तकनीक को पूरे देश में रेलवे के डिपो में अपनाया जाएगा।

बनाने में कीमत नहीं, बल्कि काम के आठ घंटे की लागत

बोगी साईफ्रेम फिक्सर तकनीकी से कम समय और कम लागत में वैगन तैयार किए जाएंगे। क्योंकि मालगाड़ी के एक नए वैगन का बाजार मूल्य करीब ढाई लाख रुपये है। इस तकनीकी से महज आठ घंटे में तैयार कर दिया जाता है। लागत के नाम पर सिर्फ डिपों में रेलवे के कलपुर्जे और पुराने वैगन के पार्ट्स हैं, जिसे फिक्सर सिस्टम के जरिए जोड़कर नए वैगन तैयार कर देते हैं।

एक साल लग जाते थे नए वैगन मिलने में, तब सोची कुछ नया करने की

भिलाई डिपो के वरिष्ठ अनुभाग इंजीनियर बलाई सील ने बताया कि मालगाड़ी के लिए नए वैगन की खरीदी करने में एक साल का समय लग जाता था क्योंकि यहां से डिमांड जाने के बाद बजट आदि के जारी होने में काफी समय लग जाता था। ऐसे में मालगाड़ी के वैगनों की आपूर्ति नहीं हो पाती थी। इसके बाद हमने सोचा कि क्यों न पुराने और रिजेक्ट हो चुके वैगन के अच्छे हिस्सों के इस्तेमाल से वैगन तैयार किया जाए। फिर क्या था, टीम वर्क की मेहनत ने रंग लाई।

अब कबाड़ से 150 वैगन बनाने का लक्ष्य भी निर्धारित, रेलवे के बचेंगे डेढ़ करोड़ रुपये

अब रेलवे के पुराने कोच और वैगन के कबाड़ से नए वैगन बनाने का लक्ष्य भी तय कर लिया गया है। ऐसे में मंडल के मुताबिक करीब सलाना डेढ़ से दो करोड़ रुपये की बचत होगी। अभी तक नए वैगन की खरीदी के लिए रेलवे से 20 करोड़ रुपये फंड की जरूरत होती थी।

सालाना डिपो में डेढ़ हजार बोगियों की होती है मरम्मत

आरओएच डिपो में पीपी यार्ड भिलाई में 750 प्रति माह आरओएच एवं लगभग 1500 बोगियों की मरम्मत की जाती है। इनसे निकलने वाले पुर्जों को इस्तेमाल में लाया जा रहा है। दो रिजेक्टेड बोगी के हिस्सों के सही पार्ट्स को निकालकर एक में फिक्स कर दिया जाता है।

– इस तकनीक के इस्तेमाल से अब काफी संख्या में हम अपने डिपो में नए वैगन बना सकते हैं। आने वाले समय में इसे देश के सभी डिपो अपनाएंगे। इसके लिए इंजीनियरों की टीम बधाई का पात्र है। – कौशल किशोर, डीआरएम, रायपुर मंडल