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इस मंदिर में होता है आत्मा के कर्मों का हिसाब-किताब, धर्मराज (यमराज) को समर्पित है ये मंदिर

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भारत में ऐसे कई मंदिर है जो अपनी विशेषताओं के कारण पूरे विश्व में प्रसिद्ध है. कुछ मंदिर कला की दृष्टि से, कुछ रहस्य की दृष्टि से तो कुछ आस्था की दृष्टि से बड़े ही महत्वपूर्ण है. ऐसा ही एक मंदिर हिमाचल प्रदेश के चंबा जिले के जनजातीय भरमौर चौरासी मंदिर समूह में से एक है. ये मंदिर मृत्यु का देवता कहे जाने वाले भगवान यमराज का है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस मंदिर में धर्मराज और चित्रगुप्त रहते हैं. आस्तिक हो चाहे नास्तिक मरने के बाद व्यक्ति की आत्मा को यही लाया जाता है.

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जब किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है तो यमदूत उसे सबसे पहले इसी मंदिर में लाते हैं. यमदूत आत्मा को पकड़कर सबसे पहले चित्रगुप्त के सामने पेश करते हैं, जहां पर चित्रगुप्त आत्मा के अच्छे और बुरे कर्मों का लेखा जोखा सुनाता है. यहां से यमदूत आत्मा को पकड़कर यमराज के सामने पेश करते हैं. इस मंदिर में चित्रगुप्त और यमराज का कमरा आमने सामने ही है. इन कमरों का जिक्र गरुड़ पुराण में भी किया गया है. गरुड़ पुराण के अनुसार यमराज के दरबार में चार दिशाओं से चार द्वार है.

कई सालों से इस मंदिर की पूजा अर्चना करने वाले लक्ष्मण दत्त शर्मा बताते हैं, कि यमराज ऐसी मंदिर में बैठकर आत्मा को स्वर्ग या नरक में भेजते हैं. इस मंदिर के ठीक सामने ही चित्रगुप्त की कचहरी है, जहां पर आत्मा के उल्टे पांव दर्शाए गए हैं. अगर किसी व्यक्ति की मौत अस्वभाविक रूप से हो जाती है तो यहां पिंड दान करना चाहिए. ऐसा करने पर व्यक्ति की आत्मा को मुक्ति मिलती है. यह मंदिर कला की दृष्टि से भी प्रकृति की गोद में बसा हुआ है. इस मंदिर के सामने ही पवित्र वैतरणी नदी बहती है जहां पर काफी लोग गोदान करते हैं.

यमराज के इस इकलौते मंदिर में पिछले 250 सालों से अखंड धोना जल रहा है. वैसे लोगों में इस मंदिर का काफी डर भी है. जो भी श्रद्धालु यहां पर आते हैं, वो मंदिर के बाहर से ही हाथ जोड़ कर चले जाते हैं. यमराज के डर से इस मंदिर के अंदर जाने की हिम्मत कोई नहीं करता है.