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यहां पर 40 सालों तक सरोवर में आराम करते हैं विष्णु भगवान, बेहद ही अद्भुत है ये मंदिर

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तमिलनाड़ु के कांचीपुरम में अथि वरदराजा पेरूमल मंदिर स्थित है, जो कि भगवान विष्णु को समर्पित है। इस मंदिर में भगवान विष्णु की पूजा अथि वरदार के रुप में की जाती है। इस मंदिर से जुड़ी खास बात ये है कि भगवान अथि वरदार की प्रतिमा के दर्शन करने का मौका 40 साल में एक बार मिलता है। दरअसल भगवान अथि वरदार की प्रतिमा 40 सालों के लिए एक पवित्र तालाब में रखी जाती है और 40 साल के बाद ही इनकी प्रतिमा को तालाब से निकाला जाता है। हर 40 वर्ष में इस मंदिर में वरदार उत्सव का आयोजन किया जाता है और इस आयोजन के दौरान भक्त इस मंदिर में आकर भगवान की इस प्रतिमा के दर्शन कर पाते हैं। भगवान की ये प्रतिमा अंजीर के पेड़ की लकड़ी से बनी हुई है। जिसकी वजह से इस मूर्ति का नाम अथि वरदार रखा गया है। संस्कृति में अथि का अर्थ अंजीर होता है। ऐसी मान्यता है कि इस मूर्ति को भगवान विश्वकर्मा द्वारा बनाया गया था।

40 सालों बाद जब भगवान अथि वरदार की प्रतिमा को अनंत सरोवर से बाहर निकाला जाता है तो मंदिर में वरदार उत्सव का आयोजन किया जाता है। जो कि 48 दिनों तक चलता है और 48 दिन पूरे होने के बाद इस मूर्ति को फिर से तालाब में छिपा दिया जाता है। इस उत्सव के दौरान 40 दिनों तक भगवान अथि वरदार की प्रतिमा को लेटी अवस्था में रखा जाता है, जबकि आखिरी के आठ दिनों में ये प्रतिमा खड़ी मुद्रा में रहती है। भगवान की इस मूर्ति को एक सदी में केवल दो बार ही तालाब से निकाला जाता है। जिसकी वजह से भक्त अपने जीवन में इस मूर्ति के दर्शन अधिकतम दो बार ही कर सकते हैं।

1 जुलाई से शुरू हुआ वरदार उत्सव

पिछली बार ये मूर्ति साल 1979 में तालाब से बाहर निकाली गई थी और इस साल इस मूर्ति को तालाब में रखे हुए 40 साल हो गए हैं। ये मूर्ति 1 जुलाई को तालाब से बाहर निकाली गई है और 1 जुलाई से वरदार उत्सव की शुरूआत हो गई है जो कि 9 अगस्त तक चलने वाला है। इस उत्सव की तैयारों पर करीब 30 करोड़ रुपए खर्च किए गए हैं।

इस मंदिर से जुड़ी कथाइस मंदिर से एक पौराणिक कथा जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि एक बार ब्रह्मा और सरस्वती के बीच लड़ाई हो गई थी और ब्रह्मा जी से नाराज होकर सरस्वती मां इस जगह आई थीं। इस जगह पर आने के बाद सरस्वती मां वेगवती नदी बनकर यहां बहने लगीं। सरस्वती मां को मनाने के लिए ब्रह्मा इस जगह पर आए और उन्होंने अश्वमेध यज्ञ किया। सरस्वती मां ने इस अनुष्ठान को नष्ट करने की कोशिश लेकिन तभी अग्नि से भगवान विष्णु वरदराज के रुप में प्रकट हुए। विष्णु भगवान ने सरस्वती मां को समझकार उनका क्रोध शांत करवाया। इसके बाद भगवान विश्वकर्मा ने इस जगह पर भगवान विष्णु की मूर्ति बनाई।

ऐसा कहा जाता है कि मुगलों के आक्रमण से इस मूर्ति को बचाने के लिए मंदिर के पंडितों ने ये मूर्ति तालाब में छिपा दी थी और करीब 40 साल तक ये प्रतिमा तालाब में रही थी। 40 साल बाद इस मूर्ति को पंडितों के पुत्रों ने तालाब से बाहर निकाला। लेकिन 48 दिन के बाद ये मूर्ति अपने आप तालाब में चले गई। तब से इस प्रतिमा को 40 साल में एक बार ही तालाब से निकाला जाता है। ऐसा कहा जाता है कि तालाब के अंदर देवगुरु बृहस्पति पूजा इस मूर्ति की पूजा करते हैं।