Home धर्म - ज्योतिष केदारनाथ हादसे के 6 साल – केदारनाथ मंदिर की कहानी

केदारनाथ हादसे के 6 साल – केदारनाथ मंदिर की कहानी

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करीब 150 साल पहले रुद्रप्रयाग जिले के केदारनाथ इलाके में आर्कियोलॉजिस्ट की एक टीम गई थी, उसने एक तस्वीर खींची। ये संभवतः केदारनाथ मंदिर की सबसे पुरानी तस्वीर है। ऐसे दुर्गम पहाड़ों के बीच ऐसा भव्य मंदिर देखकर वो लोग हैरान रह गए।

150 साल पुरानी एक और तस्वीर साफ करती है कि केदारनाथ मंदिर के दक्षिणी हिस्से को लगभग छूकर बहता था मंदाकिनी नदी का पानी।

150 साल पुरानी एक और तस्वीर साफ करती है कि केदारनाथ मंदिर के दक्षिणी हिस्से को लगभग छूकर बहता था मंदाकिनी नदी का पानी।

50 साल पहले की ही एक और तस्वीर साफ दिखाती है कि उस वक्त तक भी मंदिर के आसपास इंसान का कब्जा नहीं था। यहां पुजारियों के अलावा इक्का-दुक्का लोग ही दिखते थे। लोग दर्शन कर लौट जाते थे।

50 साल पहले की ही एक और तस्वीर साफ दिखाती है कि उस वक्त तक भी मंदिर के आसपास इंसान का कब्जा नहीं था। यहां पुजारियों के अलावा इक्का-दुक्का लोग ही दिखते थे। लोग दर्शन कर लौट जाते थे।

150 साल पुरानी ही एक और तस्वीर से साफ होता है कि उस वक्त मंदिर तक पहुंचने का रास्ता तक नहीं था। वहां आने वालों को बर्फ के बीच से होकर गुजरना पड़ता था। वहीं 50 साल पुरानी तस्वीर में नजर आती है मंदिर तक जाने की राह, पतली पगडंडी जिसपर खच्चरों के जरिए यात्री ऊपर तक पहुंचते थे।

150 साल पुरानी ही एक और तस्वीर से साफ होता है कि उस वक्त मंदिर तक पहुंचने का रास्ता तक नहीं था। वहां आने वालों को बर्फ के बीच से होकर गुजरना पड़ता था। वहीं 50 साल पुरानी तस्वीर में नजर आती है मंदिर तक जाने की राह, पतली पगडंडी जिसपर खच्चरों के जरिए यात्री ऊपर तक पहुंचते थे।

यहां तक कि 40 साल पुरानी तस्वीर में भी मंदिर से सटे निर्माण नजर नहीं आते सिर्फ मंदिर के आसपास पुजारियों और पंडों के रुकने का इंतजाम था बाकी जो दर्शन के लिए आता था उसी रोज वापस लौट जाता था।

यहां तक कि 40 साल पुरानी तस्वीर में भी मंदिर से सटे निर्माण नजर नहीं आते सिर्फ मंदिर के आसपास पुजारियों और पंडों के रुकने का इंतजाम था बाकी जो दर्शन के लिए आता था उसी रोज वापस लौट जाता था।

पुराने दौर में लोग केदारनाथ मंदिर के दर्शन करने बर्फ से ढके पहाड़ों से होकर गुजरते थे।

पुराने दौर में लोग केदारनाथ मंदिर के दर्शन करने बर्फ से ढके पहाड़ों से होकर गुजरते थे।

केदारनाथ धाम के मुख्य पुरोहित वागीशलिंग स्वामी कहते हैं कि केदारनाथ में इतने सारे लोग आते हैं लेकिन ज्यादातर आस्था और भक्ति के चलते नहीं बल्कि मौज-मस्ती के लिए आते हैं। शिव तो बैरागी हैं उन्हें सांसारिक सुख के साधनों और इच्छाओं से कोई लेनादेना नहीं है लेकिन उनके नाम पर यहां आने वाले तो उल्टी राह अपनाते हैं।

केदारनाथ धाम के मुख्य पुरोहित वागीशलिंग स्वामी कहते हैं कि केदारनाथ में इतने सारे लोग आते हैं लेकिन ज्यादातर आस्था और भक्ति के चलते नहीं बल्कि मौज-मस्ती के लिए आते हैं। शिव तो बैरागी हैं उन्हें सांसारिक सुख के साधनों और इच्छाओं से कोई लेनादेना नहीं है लेकिन उनके नाम पर यहां आने वाले तो उल्टी राह अपनाते हैं।

लेकिन धीरे-धीरे यहां इंसानी कब्जा बढ़ता गया-कुछ वैध तो ज्यादातर अवैध। वहां लाखों यात्री आते गए। सैलानियों का रेला जैसे-जैसे बढ़ा सुविधाओं के नए पहाड़ धाम में खड़े किए जाने लगे। धर्मशालाएं बनीं, होटल बने और पूरे इलाके का नक्शा ही बदल गया।

लेकिन धीरे-धीरे यहां इंसानी कब्जा बढ़ता गया-कुछ वैध तो ज्यादातर अवैध। वहां लाखों यात्री आते गए। सैलानियों का रेला जैसे-जैसे बढ़ा सुविधाओं के नए पहाड़ धाम में खड़े किए जाने लगे। धर्मशालाएं बनीं, होटल बने और पूरे इलाके का नक्शा ही बदल गया।

केदारनाथ मंदिर पत्थर के एक मजबूत चबूतरे पर खड़ा हुआ साफ नजर आता है जबकि हादसे से कुछ वक्त पहले तक इस मंदिर के आसपास की तस्वीर पूरी तरह बदल चुकी थी। मंदिर से सटकर दुकानें खुल चुकी थीं। उन दुकानों में रातदिन प्रसाद, पूजा सामग्री और खाने पीने का सामान बिक रहा था, कमाई की जा रही थी। किसी ने नहीं सोचा कि ये मंदिर सदियों पुराना है, इसे बनाने वालों ने खास विधि से इसे तैयार किया ताकि ये बर्फ और पानी दोनों झेल ले लेकिन उसके आसपास व्यापार की चाहत में खड़ी दुकानों को आखिर कौन बचाएगा।

केदारनाथ मंदिर पत्थर के एक मजबूत चबूतरे पर खड़ा हुआ साफ नजर आता है जबकि हादसे से कुछ वक्त पहले तक इस मंदिर के आसपास की तस्वीर पूरी तरह बदल चुकी थी। मंदिर से सटकर दुकानें खुल चुकी थीं। उन दुकानों में रातदिन प्रसाद, पूजा सामग्री और खाने पीने का सामान बिक रहा था, कमाई की जा रही थी। किसी ने नहीं सोचा कि ये मंदिर सदियों पुराना है, इसे बनाने वालों ने खास विधि से इसे तैयार किया ताकि ये बर्फ और पानी दोनों झेल ले लेकिन उसके आसपास व्यापार की चाहत में खड़ी दुकानों को आखिर कौन बचाएगा।

और फिर 16 जून 2013 को प्रलय का वो दिन आया जब कुदरत ने रौद्र रूप दिखाते हुए अपना गुस्सा जाहिर किया। इस प्रलय के बाद केदारनाथ की तस्वीर ही बदल गई। सिवाय मंदिर के कुछ भी सलामत नहीं रहा।

और फिर 16 जून 2013 को प्रलय का वो दिन आया जब कुदरत ने रौद्र रूप दिखाते हुए अपना गुस्सा जाहिर किया। इस प्रलय के बाद केदारनाथ की तस्वीर ही बदल गई। सिवाय मंदिर के कुछ भी सलामत नहीं रहा।

केदारनाथ त्रासदी को आज एक साल पूरा हो गया है। केदारनाथ का आसमान धुला हुआ चटख नीला है, लेकिन एक साल आसमान मटमैला या घूसर नजर आ रहा था। जैसे नीचे जमीन का अक्स आसमान पर पड़ रहा हो। जमीन पर चारों तरफ मटमैला रंग था, स्लेटी रंग की चट्टानें थी मिट्टी और मौत। एक हजार साल पुराना ये मंदिर न जाने कितने बदलाव देख चुका है। मंदिर की 150 साल पुरानी तस्वीरें बताती हैं कि किस तरह इंसान ने कुदरत को मुंह चिढ़ाया, कैसे भक्ति के नाम पर, आस्था के नाम पर केदारनाथ में लालच की गंगा बहा दी, ऐसी अति की कि विनाश हो गया।

केदारनाथ त्रासदी को आज एक साल पूरा हो गया है। केदारनाथ का आसमान धुला हुआ चटख नीला है, लेकिन एक साल आसमान मटमैला या घूसर नजर आ रहा था। जैसे नीचे जमीन का अक्स आसमान पर पड़ रहा हो। जमीन पर चारों तरफ मटमैला रंग था, स्लेटी रंग की चट्टानें थी मिट्टी और मौत। एक हजार साल पुराना ये मंदिर न जाने कितने बदलाव देख चुका है। मंदिर की 150 साल पुरानी तस्वीरें बताती हैं कि किस तरह इंसान ने कुदरत को मुंह चिढ़ाया, कैसे भक्ति के नाम पर, आस्था के नाम पर केदारनाथ में लालच की गंगा बहा दी, ऐसी अति की कि विनाश हो गया।