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… तो क्या अब नहीं बिकेगा जॉन्सन एंड जॉन्सन बेबी शैंपू?

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राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने देश के चार राज्यों को (ज़ोन के आधार पर) पत्र भेजकर बेबी प्रोडक्ट बनाने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनी जॉन्सन एंड जॉन्सन के एक उत्पाद शैंपू की बिक्री पर रोक लगाने का आदेश दिया है.

एनसीपीसीआर की इस चिट्ठी में कहा गया है कि यह आदेश ना सिर्फ़ नए स्टॉक के लिए है बल्कि दुकानों में मौजूद पुराने स्टॉक को भी दुकानों से हटाने के लिए है.

एनसीपीसीआर का यह आदेश राजस्थान की ड्रग्स टेस्टिंग लेबोरेटरी की रिपोर्ट आने के बाद आया है.

जॉन्सन एंड जॉन्सन की प्रतिक्रिया

हालांकि कंपनी ने अपनी प्रतिक्रिया में इन सभी आरोपों को ग़लत ठहराया है. जॉन्सन एंड जॉन्सन ने राजस्थान सरकार की प्रयोगशाला के जांच में आई रिपोर्ट को ग़लत ठहराया है.

कंपनी का कहना है कि वो किसी भी सरकार की अंतरिम रिपोर्ट को स्वीकार नहीं करते हैं और हम इसे चुनौती देते हैं. हम इस मामले में दोबारा जांच की मांग करते हैं और सेंट्रल ड्रग लेबोरेटरी की जांच रिपोर्ट का इंतज़ार करेंगे. इस दिशा में एनसीपीसीआर ने कोई क़दम उठाया है या नहीं, हमें इसकी जानकारी नहीं है.

जॉन्सन एंड जॉन्सन की तरफ़ से बीबीसी को भेजा गया जवाब

कंपनी का दावा है कि भारतीय मानकों पर उनके उत्पाद पूरी तरह खरे उतरते हैं. हमने भारतीय संस्थाओं को इस बारे में सूचित किया है कि हमारे शैंपू में फॉर्मेल्डिहाइड का इस्तेमाल नहीं करते ना ही कोई ऐसा तत्व डालते हैं जिससे आगे चलकर फॉर्मेल्डिहाइड बने. हमारे उत्पाद D&C Act और D&C नियमकों पर खरे उतरते हैं.

जॉन्सन एंड जॉन्सन मूल रूप से एक अमरीकी कंपनी है जो बच्चों के लिए कॉस्मेटिक्स और दूसरी चीज़ें बनाती है. कंपनी का कहना है कि उसके उत्पादों में ख़तरनाक़ तत्व होने की बात की जा रही है, जोकि ग़लत है.

जबकि एनसीपीसीआर ने अपनी चिट्ठी में सीपीसीआर एक्ट 2005 के सेक्शन 13 (1) (j) का हवाला दिया है. एनसीपीसीआर के चेयरपर्सन प्रियांक कानूनगो ने बीबीसी को बताया कि साल 2016 में कई ऐसी ख़बरें आई थीं जिसमें जॉन्सन एंड जॉन्सन कंपनी के उत्पादों में कुछ ऐेसे तत्वों के होने की ख़बर आई थी जो बच्चों के लिए ख़तरनाक होते हैं.

कानूनगो कहते हैं “आयोग ने उसी समय संज्ञान लेते हुए राज्यों को आदेश दिया था कि वे अपने यहां बिकने वाले उत्पादों की गुणवत्ता की रिपोर्ट दें. उनसे कहा गया था वे सैंपल लें और टेस्ट कराके रिपोर्ट भेजें. इसमें आयोग ने बार-बार पूछा लेकिन कोई ठोस रिपोर्ट आ नहीं सकी. जिसके बाद उन राज्यों के संबंधित अधिकारियों को सम्मन भेजा गया. जिसके बाद वो लोग पेश हुए लेकिन जो रिपोर्ट उन्होंने दी उसमें किसी भी राज्य के संबंधित अधिकारी ने शैंपू के सैंपल की रिपोर्ट नहीं ली. उन्होंने पाउडर की तो रिपोर्ट ली लेकिन शैंपू की नहीं.”

बैन सिर्शैंपू पर

कानूनगो बताते हैं कि पाउडर की रिपोर्ट तो संतोषजनक थी लेकिन शैंपू की कोई रिपोर्ट नहीं आई. सिर्फ़ राजस्थान एकमात्र ऐसा राज्य था जहां से शैंपू के सैंपल की रिपोर्ट मिली और इस रिपोर्ट में कहा गया कि शैंपू में फॉर्मेल्डिहाइड है और इसे हटा देना चाहिए.

कानूनगो बताते हैं कि इस रिपोर्ट के आधार पर ही सभी राज्यों के मुख्य सचिवों को लिखा गया है कि राजस्थान से आई शैंपू के सैंपल की रिपोर्ट बताती है कि यह ख़तरनाक है, इसलिए इसे आप अपने यहां बैन करें और इसकी बिक्री पर रोक लगाएं.

हालांकि राज्यों को यह भी कहा गया है कि अगर उनके यहां के सैंपल की रिपोर्ट इससे अलग आती है तो आयोग को सूचित करें.

कंपनी का रिपोर्ट मानने से इनक़ार

जॉन्सन एंड जॉन्सन ने बीबीसी को एक मेल के ज़रिए सूचित किया कि वो किसी राज्य की इस तरह की आंतरिक जांच रिपोर्ट को स्वीकार नहीं करते हैं. कंपनी का कहना है कि वे दोबारा-जांच और उसकी रिपोर्ट का इंतज़ार करेंगे जो सेंट्रल ड्रग्स लेबोरेट्री में होगी. उन्होंने कहा कि उन्हें एनसीपीसीआर के किसी दिशा-निर्देश के बारे में जानकारी भी नहीं है.

कंपनी ने अपने जवाब में दावा किया है कि उसके उत्पाद पूरी तरह से सुरक्षित और उच्च गुणवत्ता वाले हैं.

ख़तरा किस चीज़ को लेकर?

प्रियांक कानूनगो कहते हैं कि यह बैन या रोक शैंपू में मौजूद फ़ॉर्मेल्डिहाइड रसायन की वजह से लिया गया है. फ़ॉर्मेल्डिहाइड बच्चों के लिए ख़तरनाक है, इसलिए यह फ़ैसला बच्चों को ख़तरे से दूर रखने के लिए लिया गया है.

दरअसल, फ़ॉर्मेल्डिहाइड एक रंगहीन, तेज़ गंध वाला और ज्वलनशील रसायन है. इसका इस्तेमाल घर में इस्तेमाल होने वाले कई उत्पादों में किया जाता है. इसके अलावा इसका उपयोग फंगस ख़त्म करने, कीटाणुनाशक के रूप में किया जाता है. कई बार इसका प्रयोग प्रीज़र्वेटिव के तौर पर भी किया जाता है.

फ़ॉर्मेल्डिहाइड की कुछ मात्रा तो हवा में भी मौजूद होती है लेकिन अगर इसकी मात्रा बढ़ जाए तो आंखों में पानी, जलन, नाक और गले में जलन, खांसी और चक्कर आने की शिकायत हो सकती है.

कई बार कुछ लोगों को स्किन इंफ़्केशन भी हो जाता है.

कुछ रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि फ़ॉर्मेल्डिहाइड की अधिक मात्रा की वजह से कैंसर भी हो सकता है. नेशनल कैंसर इंस्टीट्यूट में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक़, फ़ॉर्मेल्डिहाइड के संपर्क में आने से जहां आंखों में जलन जैसी शिकायत हो सकती है वहीं इसके दूरगामी प्रभाव भी हो सकते हैं.

साल 1980 में प्रयोगशाला में हुए एक अध्ययन में यह भी दावा किया गया था कि इसके संपर्क में आने से चूहों में नाक का कैंसर हो गया. जिसके बाद 1987 में एन्वायरमेंट प्रोटेक्शन एजेंसी ने भी माना कि इसकी बहुत अधिक मात्रा से कैंसर होने का ख़तरा हो सकता है.

विशेषज्ञ की राय

दिल्ली में प्रैक्टिस करने वाली डॉ. दिपाली भी कुछ यही कहती हैं. उनका कहना है कि फॉर्मेल्डिहाइड सिर्फ़ बच्चों के लिए ही नहीं बल्कि बड़ों के लिए भी उतना ही ख़तरनाक है. वो कहती हैं कि अगर त्वचा बहुत अधिक इसके संपर्क में आ रही है तो कैंसर का ख़तरा भी हो सकता है.

वो कहती हैं “अमूमन इस रसायन का इस्तेमाल शैंपू को झागदार बनाने के लिए किया जाता है. लेकिन जिन प्रोडक्ट्स में इसकी मात्रा बहुत अधिक हो उससे बचना चाहिए. ख़ासतौर पर बच्चों के लिहाज़ से…”

दिपाली के अनुसार, ये एक बहुत महीन रसायन होता है. जो शरीर के रोम-छिद्रों और दूसरे छिद्रों से रक्त-कोशिकाओं में चला जाता है और इसकी वजह से कोशिकाएं टूटने लगती हैं, जो कैंसर का कारण बन सकता है. ऐसे में कोशिश करें कि नेचुरल और ऑर्गेनिक चीज़ों का ही इस्तेमाल करें.