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87वां चुनाव लड़ेंगे मनरेगा मजदूर अंबेडकरी हसनुराम

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आगरा। अगर दिल में कोई ऐसी बात लग जाए तो आदमी क्या नहीं कर सकता। इसका एक जीता जागता उदाहरण आगर के खेरागढ़ निवासी अंबेडकरी हसनुराम से अच्छा कोई नहीं हो सकता। बसपा के एक नेता की बात इन्हें इतनी बुरी लगी कि उन्होंने चुनाव लड़कर अपनी पहचान बनाने की ठान ली। तब से वे वार्ड मेंबरी से लेकर राष्ट्रपति पद के चुनाव में 86 बार पर्चा भर चुके हैं। इस बार भी लोकसभा चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। मंगलवार को उन्होंने पर्चा खरीदा है। यह उनका 87वां चुनाव होगा, जिसके लिए वे नामांकन दाखिल करेंगे। हसुनराम कोई अमीर व्यक्ति नहीं बल्कि मनरेगा मजदूर हैं

पिछले लोकसभा चुनाव में मिला था पांचवा स्थान

मनरेगा मजदूर हसुनराम 8 दिन लगातार काम करते हैं और 4 दिन लोगों की सेवा में धन खर्च करते हैं। जनता के बीच इनकी प्रसिद्धि का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पिछले लोकसभा चुनाव में बिना बैनर पोस्टर के इन्हें 17 हजार वोट मिले थे और इन्होंने 5वां स्थान प्राप्त किया था। लगातार चुनाव लड़ने की कहानी बताते हुए हंसुराम ने बताया कि 1985 में आगरा के बसपा नेता से विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए टिकट मांगा था तो नेता ने कहा कि, तुम्हें तुम्हारी खुद की बीवी तक नहीं पहचानती है, कोई और तुझे क्या वोट देगा।

बसपा नेता ने कही थी ये बात

बसपा नेता की यह बात हंसनुराम को इतनी बुरी लगी की उन्होंने राष्ट्रपति पद के लिए पर्चा दाखिल कर दिया। कागजी कमी से जब पर्चा खारिज हो गया तो उन्होंने 1988 में खेरागढ़ से विधानसभा चुनाव लड़ा। तब से आज तक वो लगातार हर चुनाव में हाथ आजमा रहे हैं और आज तक किसी भी चुनाव में जीते नहीं हैं पर आज भी जीतने की उम्मीद है और यही सोच कर इस लोकसभा चुनाव में वो फतेहपुर सीकरी लोक सभा से चुनाव लड़ने जा रहे हैं।

मेरी पत्नी करती है सहयोग

हसनुराम ने बताया कि जब देश 1947 में आजाद हुआ तो उनका जन्म हुआ। जिस तरह अंबेडकर और लोहिया को समाजसेवा करने देने के लिए उनकी पत्नियों ने त्याग किया वैसे ही मेरी पत्नी भी त्याग करती है और मुझे सहयोग देती है। सत्तर वर्षीय हसनुराम मंगलवार को पैदल ही अपने गांव नगला दुल्हे खा से कलेक्ट्रेट पहुंचे और पर्चा खरीदा है।

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