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चंद्रयान-1: जब 11 साल पहले भारत ने दुनिया को बताया- चांद पर पानी है

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भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो के चंद्रयान-1 मिशन को आज (22 अक्टूबर) पूरे 11 साल हो चुके हैं। चंद्रयान-1 की वजह से आज भारत का नाम स्पेस क्लब में शामिल देशों में गर्व से लिया जाता है। 22 अक्टूबर 2008 को इसरो ने चांद पर चंद्रयान-1 रॉकेट भेज कर इतिहास रच दिया। चंद्रयान-1 ने चांद पर पानी की खोज की और दुनिया को बताया कि भारत किसी अन्य देशों से कमतर नहीं है। इसरो की इतनी बड़ी खोज से पूरी दुनिया हैरान थी कि आखिर भारत ने यह कैसे किया, यह पूरी सदी की सबसे बड़ी खोज थी।पहली कोशिश में रचा इतिहास
पहली कोशिश में रच दिया इतिहास

बता दें कि, चंद्रयान-1 ने 22 अक्टूर को चांद के लिए उड़ान भरा और अंतरिक्ष में धरती के 7 चक्कर लगाने के बाद वह पहली बार 8 नवंबर को चांद की पहली कक्षा में पहुंचा। चार बार चांद की कक्षा में चक्कर काटने के बाद 12 नवंबर को चंद्रयान-1 चांद की सतह के करीब 100 किलोमीटर उपर पहुंच गया। चंद्रयान-1 को 2 साल तक काम करने के लिए बनाया गया था लेकिन अंतरिक्ष में रेडिएशन ज्यादा होने की वजह से उसमें लगे कंप्यूटरों को नुकसान पहुंचा और वह सिर्फ 11 महीने ही काम कर सका। इतने कम समय में भी चंद्रयान-1 ने धरती पर कई अहम जानकारियां भेंजी, इनमें से सबसे बड़ी खोज चांद पर पानी का पता लगाना था।

चांद पर पानी की खोज
चांद पर की पानी की खोज

11 महीने काम करने के बाद इसका पृथ्वी के डीप नेटवर्क से संपर्क टूट गया और वह अंतरिक्ष में ही लापता हो गया। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा में 2 जुलाई 2016 को एक बार फिर चंद्रयान-1 का पता लगाया। वह इस दौरान भी चांद का चक्कर लगा रहा था। 11 महीने के दौरान चद्रयान-1 ने चांद के चारों तरफ 3400 से ज्यादा चक्कर लगाए। चद्रयान-1 ने अपने कार्यकाल में 70 हजार थ्री-डी तस्वीरें इसरो को भेजी, उसने करीब चांद की 70 प्रतिशत हिस्से की तस्वीरें भेजी थीं। इसके अलावा चंद्रयान-1 ही ऐसा पहला मिशन था जिसमें वैज्ञानिकों को टेरेन मैपिंग कैमरे की मदद से पहली बार चांद की चोटिंयों और गड्ढों को करीब से देखने का मौका मिला।

20 साल पहले आया आइडिया
20 साल पहले चद्रयान-1 का आया आइडिया

चद्रयान-1 को भले ही आज से 11 साल पहले अंतरिक्ष में भेजा गया हो लेकिन इसका आइडिया 20 साल पहले ही आ गया था। 1999 में इंडियन एकेडमी ऑफ साइंसेस ने इसका सुझाव दिया और वर्ष 2000 में एस्ट्रोनॉटिकल सोसाईटी ऑफ इंडिया ने इसे हरी झंडी दिखाई। इस मिशन में देश के बड़े-बड़े वैज्ञानिकों को शामिल किया गया, वर्ष 2003 में इस मिशन को सरकार ने भी मंजूरी दे दी।