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सरकार ने एक जगह से दूध और​ चिकन बेचने की योजना बंद की

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मध्यप्रदेश की सरकार ने एक ही जगह से गाय का दूध और कड़कनाथ मुर्ग़े के मांस को बेचने की योजना को बंद कर दिया है. इस योजना के तहत गाय का दूध और चिकन को एक ही पार्लर से बेचा जा रहा था.

हालांकि इसमें एक पार्टिशन किया गया था. लेकिन पिछले महीने शुरु हुई इस योजना का विरोध विपक्षी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और जैन समाज के लोग कर रहे थे.

जब इस योजना की शुरुआत की गई थी तो सरकार का दावा था कि उसके पार्लर में मिलने वाले चिकन और गाय के दूध की शुद्धता की पूरी गारंटी रहेंगी. लेकिन भाजपा ने इस पर कड़ी आपत्ति दर्ज कराई थी. भाजपा से जुड़े कई स्थानीय नेताओं का कहना है कि इससे लोगों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचेगी. भाजपा के नेताओं का कहना था कि सरकार को किसी भी विषय पर निर्णय लेने से पहले देखना चाहिये कि उनका क़दम किसी धर्म के ख़िलाफ़ तो नहीं है.

भाजपा विधायक रामेश्वर शर्मा ने कहा, “यह निर्णय बिना सोचे विचारे लिया गया था. गाय और उसके दूध का हिंदू धर्म में क्या स्थान है यह सरकार को नहीं मालूम क्या. सरकार ने उसके बावजूद इसे चिकन के साथ शुरु कर दिया.”

वो कहते हैं, “जो व्यक्ति चिकन बेच रहा है वही दूध कैसे बेच सकता है. आख़िर एक ही व्यक्ति के हाथ से जो चिकन को भी छू रहा हो और जो दूध भी बेच रहा हो, कोई कैसे ख़रीद सकता है.”

वह आरोप लगाते हैं, “यह कोशिश थी हिंदुओं को नज़र अंदाज़ करने की.”

वही जैन समाज से ताअल्लुक़ रखने वाले रविंद्र जैन भी इसके ख़िलाफ़ थे. उन्होंने सोशल मीडिया के ज़रिये मुहिम चलाई थी.

उन्होंने सरकार से सवाल किया, “क्या आपको मप्र की जनता ने इसीलिए चुना था कि आप दूध की दुकानों से कड़कनाथ मुर्ग़े का मांस बेचें? यह सब तब हो रहा है जब आपकी सरकार महात्मा गाँधी की 150वीं जयंती मनाने का ढोंग कर रही है.”

उन्होंने कहा कि सरकार को इस तरह के निर्णय नहीं लेने चाहिये.

इसका विरोध करने वालों की मांग थी कि चिकन और दूध के पार्लर अलग-अलग खोले जाने चाहिये और बेचने वालों को भी अलग-अलग होना चाहिये.

प्रदेश के पशुपालन मंत्री लाखन सिंह यादव ने विपक्ष की मांग को ख़ारिज कर दिया था. उन्होंने कहा था, “चिकन पार्लर और दूध पार्लर के बीच में पार्टीशन रखा गया है. लेकिन विपक्ष बेवजह का मुद्दा बना रहा है.”

लेकिन अब सरकार ने आदेश निकाल कर अपने निर्णय को बदल दिया है. अब चिकन और दूध दोनों ही अलग पार्लर से बेचे जायेंगे और दोनों अलग-अलग स्थान पर होगें.

भोपाल में शनिवार को आरएसएस से जुड़ी संस्था सहकार भारती ने भी इस पार्लर के विरोध में प्रदर्शन किया और सरकार से मांग की कि इसे बंद किया जाये.

शहर में पहला पार्लर पिछले महीने मध्य प्रदेश राज्य पशुधन और कुक्कुट विकास निगम प्रबंध संचालक टी एस तोमर ने एक आदेश निकाल कर चिकन बेचने की योजना को फ़िलहाल बंद कर दिया है. नये आदेश के मुताबिक़ जब तक दूध का नया पार्लर नहीं बन जाता तब तक चिकन पार्लर को बंद रखा जाएगा.

अब सरकार चिकन पार्लर और दूध पार्लर को दूरी पर खोलेंगी ताकि किसी को भी कोई दिक़्क़त न आये.

इस योजना के तहत चिकन बेचने के पीछे सरकार की मंशा थी कि आदिवासियों को रोज़गार मिले और उन्हें अपने उत्पाद का सही दाम मिले. इसमें प्रदेश के झाबुआ, धार और अलीराजपुर में मिलने वाले कड़कनाथ मुर्गे का मांस और अंडे उपलब्ध कराए जा रहे थे. यह पार्लर पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) मॉडल के तहत खोले जा रहे थे.

कड़कनाथ मध्यप्रदेश के आदिवासी झाबुआ झाबुआ, धार और अलीराजपुर इलाक़े में मिलता है. हालांकि अब यह छत्तीसगढ़ और दूसरे राज्यों में भी मांग की वजह से पहुंच चुका है. प्रदेश का यह वह इलाक़ा है जहां पर बहुत ज्यादा ग़रीबी है. कड़कनाथ की मांग होने के बावजूद इसका फ़ायदा वहां के आदिवासियों को नहीं हो पाता है इसलिये सरकार का तर्क था कि भोपाल जैसे शहर में जब इसका चिकन बेचा जाएगा तो इन लोगों को उसकी उचित क़ीमत मिलेगी. इससे फ़ायदा उन्हीं आदिवासियों को होगा जो इसको पालने का काम करते है.

कड़कनाथ की ख़ासियत यह है कि इसका मांस और पूरा मुर्गा काला होता है. इसमें प्रोटीन की मात्रा बहुत ज्यादा होती है. यह मुर्ग़ा कई बीमारियों से भी बचाता है. आमतौर पर मांग अधिक होने की वजह से इस मुर्ग़े का मांस दूसरे चिकन की अपेक्षा काफ़ी महंगा बिकता है.