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न रुका, न रुकेगा, न रोक पाएगा कोई वक्त वो मुसाफिर है जिसका कोई हमसफर नहीं होता

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अविभाजित म.प्र. में पंडित रविशंकर शुक्ल से दिगिव्जिय सिंह तक मुख्यमंत्री रहे तो छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद अजीत जोगी, डॉ. रमन सिंह तथा भूपेश बघेल (निरंतर) मुख्यमंत्री बन चुके हैं। अविभाजित म.प्र. में छत्तीसगढ़ से पं. रविशंकर शुक्ल, पं. श्यामाचरण शुक्ल, नरेश सिंह, मोतीलाल वोरा मुख्यमंत्री रहे तो विभाजन होने के बाद उमा भारती, बाबूलाल गौर, शिवराज सिंह तथा वर्तमान में कमलनाथ मुख्यमंत्री हैं। अविभाजित म.प्र. में कौन मुख्यमंत्री कैसा रहा इस पर पूर्व मुख्य सचिव एम.एन. बुच ने अपनी पुस्तक ‘व्हेन द हारवेस्ट मून इन ब्लू’ में प्रकाश डाला है। उनकी नजरों में श्यामाचरण शुक्ल बेहतर मुख्यमंत्री रहे तो अर्जुन सिंह, दिग्विजय सिंह को भेद भरे, गूढ़ या रहस्यमय मुख्यमंत्री कहा है। सुंदरलाल पटवा के कार्यकाल को डीपी मिश्रा की याद ताजा करने वाला बताया है तो हाल में दिवंगत बाबूलाल गौर के कार्यकाल की तुलना प्रकाश चंद सेठी के कार्यकाल से की है।
वैसे छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री नौकरशाह अजीत जोगी 15 साल तक शासन की बागडोर सम्हालने वाले डॉ. रमन सिंह तथा करीब 9 महीने पहले छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री बने युवा भूपेश बघेल पर कोई नौकरशाह यदि किताब भविष्य में लिखेगा तो वह दिलचस्प जरूर होगी, क्योंकि अजीत जोगी के कार्यकाल कलेक्टर राज यानि नौकरशाहों पर पूर्व नियंत्रण वाला शासनकाल माना जा सकता है तो डॉ. रमन सिंह के कार्यकाल को नौकरशाहों पर निर्भर कहा जा सकता है जहां तक भूपेश बघेल की सरकार की बात है तो 9 माह में अभी आंकलन संभव नहीं है पर छत्तीसगढिय़ा लोगों की सरकार के मुखिया छत्तीसगढिय़ा की छवि कुछ बनती दिखाई दे रही है नौकरशाहों के नियंत्रण के विषय में अभी कोई स्पष्ट राय नहीं बन सकी है।

साहब, डॉ. साहब और भूपेश

छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी छत्तीसगढ़ की नई राजधानी के लिए स्थल चयन, धान खरीदी के लिए जाने जाएंगे तो विधायकों का दलबदल कराने, कलेक्टरों के माध्यम से सरकार चलाने के लिए जाने जाएंगे, अजीत जोगी नौकरशाह होने के कारण ‘साहब’ कहलाना ही पसंद करते थे और लोग उन्हें मुख्यमंत्री बनने पर भी साहब ही कहते थे। लगातार 15 साल तक मुख्यमंत्री रहने वाले डॉ. रमन सिंह छत्तीसगढ़ की नई राजधानी विकसित करने, गरीबों को एक-दो रुपये किलो चांवल देने छग को विकसित राज्य के रूप में खड़ा करने का प्रयास करने, नौकरशाहों पर नियंत्रण नहीं रख पाने के नाम पर जाने जा सकते हैं। तीसरे तथा वर्तमान मुख्यमंत्री-भूपेश बघेल बतौर कांग्रेस अध्यक्ष 68 विधायक जिताने वाले, मूल छत्तीसगढिय़ा, छत्तीसगढ़ को भविष्य में नया स्वरूप देने ‘नरवा, गरुवा, घुरवा तथा बाड़ी’ शुरु करने , आते ही मुख्य सचिव तथा पुलिस महानिदेशक बदलने एक बड़े चर्चित आईपीएस मुकेश गुप्ता को निलंबित करने, कुछ भ्रष्ट नौकरशाहों के खिलाफ जांच कराने के नाम पर चर्चा में है। वहीं कुछ राजनेताओं के खिलाफ भी जांच कराने की हिम्मत करने वाले नेता के रूप में उभरे हैं। नौकरशाहों पर उनका नियंत्रण कितना है इसका खुलासा तो अभी नहीं हो सका है पर एडीजी स्तर के दो चर्चित पुलिस अफसर एसआरपी कल्लूरी तथा जीपी सिंह की नियुक्ति पर वे चर्चा में जरूर हैं। बहरहाल पूर्व मुख्यमंत्री साहब, डॉ. साहब कहलाते थे पर लोग जब अफसरों से पूछते हैं कि ‘भूपेश कति हे…?’ तो सभी को आश्चर्य होता है। अभी तक एक आम छत्तीसगढिय़ा की छवि भूपेश बघेल के साथ-जुड़ी हुई है।

श्यामाचरण बेहतर तो दिग्गीराजा रहस्यमय….

पूर्व मुख्य सचिव एम.एच. बुच द्वारा लिखित पुस्तक ‘व्हेन द हारवेस्ट मून इन ब्लू’ मेें अविभाजित मध्यप्रदेश के कुछ मुख्यमंत्रियों के कार्यकाल पर प्रकाश डाला गया है। उन्होंने म.प्र. के निर्माता की श्रेणी में 2 मुख्यमंत्रियों पं. श्यामाचरण शुक्ल तथा प्रकाशचंद सेठी को शामिल किया है। पं. श्चामाचरण शुक्ल के विषय में बुच ने लिखा है.. शुक्ल वाज द ओनली विजनरी चीफ मिनिस्टर दी स्टेट हैज एव्हर हेट। वे विकास पुरुष थे, विकास के पुरोधा, स्वप्नदृष्टा थे, विकास की युक्तियों में सतत लीन। उनकी आंखों में म.प्र. को विकसित, समृद्ध और आधुनिक राज्य बनाने का सपना तैरता रहता था। उनके जेहन में विकास का बहुत साफ ब्लूप्रिंट था। म.प्र. की सिंचाई सहित कई योजनाएं उन्हीं की देन है।
प्रकाश चंद सेठी के मुख्यमंत्रित्व कार्यकाल के विषय में बुच ने लिखा है कि सेठी क्लासिकल ढांचे में ढले सनकी नेता थे। कई बार पागलपन की हदों को छूते थे वे बौद्धिक दिग्गिज तो नहीं थे पर उनमें व्यवहारिकता थी। गजब का कामनसेंस था, केंद्र सरकार से उनके रिश्ते बेहद उमदा थे। निहायत ईमानदार प्रकाशचंद सेठी ने सर्तकतापूर्वक अफसरों का चयन किया था और अफसरों को बेरोकटोक भी काम करने दिया। वे गवर्नर के भ्रष्ट तौर-तरीकों को मानने और साथ देने तैयार नहीं थे। उनके कार्यकाल में जल आपूर्ति, आवास निर्माण, बिजली उत्पादन समेत अधोसंरचना का विकास तेजी से हुआ। उनकी ईमानदारी का आलम तो यह था जब वे कालांतर में बीमार पड़े और मृत्यु शैया पर थे तब उनके पास न तो अपना स्वयं का मकान था और न ही ईलाज कराने के लिए समुचित पैसा…।
म.प्र. के चाणक्य अर्जुन सिंह को कहा जाता था पूर्व मुख्य सचिव एम.एन. बुच ने अपनी पुस्तक में अर्जुन सिंह के विषय में लिखा है कि यकीनन उनके पास कुशाग्रबुद्धि थी, उनकी ग्राह्यता गजब की थी। अपनी शिक्षा, बुद्धिमता और पृष्ठभूमि के चलते वे महान राजनेता हो सकते थे लेकिन वे जोड़-तोड़ की राज्यस्तरीय रणनीति से उपर नहीं उठ सके। उनकी सराहना करनी होगी कि उन्होंने रायपुर, दुर्ग, पीथमपुर तथा मंदीद्वीप आदि में औद्योगिक केंद्रों का जाल बिछाकर प्रदेश में औद्योगिकीकरण की नीव रखी थी। पूर्व मुख्य सचिव बुच ने अपनी पुस्तक अविभाजित म.प्र. के आखरी मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को भेदभरी, गूढ़और रहस्यमय शख्सियत माना है। दिग्गीराजा मृदूभाषी, सुशिक्षित, तीक्ष्ण बुद्धि तथा शालीन बताया है उन्होंने दिग्विजय सिंह को राजनीति में ‘सब कुछ चलता है मार्का राजनीति’ का समर्थक बताया है। बुच लिखते हैं कि दिग्गी राजा न जाने कैसे इस निष्कर्ष पर पहुंच गये कि सत्ता, कामों और उपलब्धियों से नहीं वरन, जाति, धर्म और सामाजिक कारकों के आधार पर जोड़-तोड़ से चलती है। राजनीति पंडित इसे दिग्विजय सिंह की सोशल इंजीनियरिंग कहते हैं। बुच की नजरों में दिग्विजय सिंह राजनीतिज्ञों की प्रजाति होमो पालिटिक्स के सर्वोत्तम उदाहरण हैं।
लौह पुरुष, राजनीति के चाणक्य डीपी मिश्रा के विषय में बुच ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि मंत्रिमंडल में उनका गजब का नियंत्रण था। वे मोरारजी भाई तथा सरदार पटेल जैसी दृढता के प्रशासक थे। आर.पी. नरोन्हा उस समय मुख्य सचिव थे। उस समय सीएम और सीएस के आपसी रिश्ते अच्छे थे। उन्होंने प्रशासनिक आदर्श का प्रतिमान रच दिया था।
अविभाजित म.प्र. के मुख्यमंत्री तथा मिनी अटल बिहारी वाजपेयी कहे जाने वाले सुंदरलाल पटवा के विषय में लिखा है कि बेहिचक कठोर निर्णय लेने की उनकी कार्यप्रणाली और प्रशासनिक शैली के चलते पटवा जी, डीपी मिश्रा की याद दिलाते थे। उन्होंने यह भी लिखा है कि बाबरी ढांचा ध्वंस के बाद भोपाल में कानून की बदहाली के लिए पटवा नहीं तत्कालीन कलेक्टर प्रवेश शर्मा, पुलिस कप्तान सुरेन्द्र सिंह की अक्षमता जिम्मेदार थी। म.प्र.के विभाजन के बाद बाबूलाल गौर भी मुख्यमंत्री बने थे। बुच ने उनके विषय में भी लिखा है। उन्होंने बाबूलाल गौर के कार्यकाल की तुलना प्रकाश चंद सेठी के कार्यकाल से की है। उन्होंने लिखा है कि बाबूलाल गौर अपनी सीमाओं से वाकिफ थे। उन्होंने विजय सिंह जैसा बढिय़ा मुख्य सचिव चुना, अफसरों का विश्वास जीता राजभवन से भी अच्छे रिश्ते बनाये थे। उन्होंने शहरीकरण, उर्जा को प्राथमिकता दी थी।

और अब बस…..

0 छत्तीसगढ़ में पार्षद, विधायक, सांसद, केन्द्रीय मंत्री का सफर पूरा कर रमेश बैस त्रिपुरा के राज्यपाल बन गये हैं। उनकी सहजता ही है कि वे अपनी राजनीति और उम्र से छोटी छग की राज्यपाल सुश्री अनसुईया उइके से सौजन्य मुलाकात करने पहुंच गये।
0 एक बार प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने कहा था कि देश को पीएम (प्रधानमंत्री), सीएम (मुख्यमंत्री) तथा डीएम (कलेक्टर) चलाते हैं। छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने डीएम के बाद सीएम का सफर पूरा किया।
0 चरणदास महंत पहले नायब तहसीलदार थे, विधायक, मंत्री, सांसद केंद्रीय मंत्री होने के बाद अब वे छग विधानसभा के अध्यक्ष बन चुके हैं।
0 छत्तीसगढ़ में 15 सालों तक मुख्यमंत्री रहे डॉ. रमनसिंह कभी भी राज्यमंत्रिमंडल में शामिल नहीं रहे सीधे मुख्यमंत्री बन गये।
0 भूपेश बघेल मुख्यमंत्री बनने के पहले अविभाजित म.प्र. में दिग्विजय मंत्रिमंडल तथा छग बनने पर अजीत जोगी मंत्रिमंडल में शामिल रहे।
0 अमितेष शुक्ल के द्वारा पं. रविशंकर शुक्ल, पिता श्यामाचरण शुक्ल अविभाजित म.प्र. के मुख्यमंत्री रहे इसलिए वे मुख्यमंत्री पद के लिए स्वयं को स्वाभाविक दावेदार मानते हैं।