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अटल जी के 17 साल पुराने सपने को मोदी करेंगे साकार…

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भारत के दसवें प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की आज पहली पुण्य तिथि है। आज के ही दिन 16 अगस्त, 2018 को प्रखर वक्ता और अपनी हाजिर जवाबी के लिए प्रसिद्ध अटल जी का निधन हो गया था। प्रधानमंत्री रहते अटली जी ने कई साहसिक फैसले लिए। भले ही वह 24 पार्टियों के समर्थन से गठबंधन सरकार चला रहे थे। लेकिन देशहित में उनके फैसलों को कोई डिगा न सका। पोखरण परीक्षण से लेकर पोटा कानून, जातिवार जनगणना पर रोक, सर्व शिक्षा अभियान, लाहौर-आगरा समिट और कारगिल-कंधार की नाकामी तक उन्होंने कई कठिन निर्णय लिए। ऐसे ही निर्णयों में से एक था देश की नदी जोड़ो योजना। वर्ष 2002 में अटल जी के देखे इस सपने को पूरा करने की दिशा में मोदी सरकार ने कदम बढ़ा दिया है।

सुखे और बाढ़ से निजात दिलाना है मकसद 

वर्ष 2003 में अटल जी ने सुरेश प्रभु की अध्यक्षता में एक टास्क फोर्स का गठन किया था। उस समय इस परियोजना में लगभग 5.6 लाख करोड़ रुपयों की लागत का अनुमान था। इस परियजोजना का मकसद देश को सुखे और बाढ़ से निजात दिलाना था। इस योजना के अंतर्गत गंगा समेत देश की 60 नदियों को जोड़ने की योजना है।

अटल जी की योजना पर होता अमल तो बच जाती 290 की जान 

मौजूदा समय में भारत के 9 राज्यों में इन दिनों बाढ़ का कहर जारी है। इनमें गुजरात, केरल, कर्नाटक और महाराष्ट्र बाढ़ से सबसे अधिक त्रस्त हैं। बाढ़ से अब तक करीब 290 लोगों की जान चली गई है। एक रिपोर्ट के मुताबिक करीब 12 लाख लोग बाढ़ से प्रभावित बताए जा रहे हैं। सरकार भी हर संभव तरीके से प्रभावितों की मदद में जुटी हुई है। लेकिन इन 290 लोगों की संभवतः जान बचाई जा सकती थी। यदि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की महत्वाकाक्षी योजना पर वर्ष 2004 में अमल शुरू किया होता।

मोदी ने नदी जोड़ो परियोजना पर शुरू किया काम 

2014 में मोदी सरकार बनने के बाद से ही इस परियोजना का खाका बनना शुरू हो गया था। सरकार ने इसे पूरा करने के लिए चरणबंद्ध तरीके से योजना बनाई है। शुरूआती चरण में 30 नदियों को जोड़ने की योजना है जिस पर 5.5 लाख करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है। इसमें 14 हिमालय़ की और 16 प्रायद्वपीय नदियां शामिल हैं। शुरुआती चरण में केन-बेतवा, पंचेश्वर, नॉर्थ कोएल, पार-तापी-नर्मदा और दमन गंगा- पिंजल शामिल है।

2012 में शीर्ष कोर्ट ने दिया था केंद्र को निर्देश 

2012 में सुप्रीम कोर्ट ने फिर से केंद्र सरकार को निर्देश दिया की इस महत्वकांशी परियोजना को समयबद्द तरीके से शुरू किया जाए ताकि समय बढ़ने की वजह से इसकी लागत और न बढ़ जाए। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने 31 अक्टूबर, 2002 में एक जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार को इस योजना को 2017 तक पूरा करने पर जोर दिया था। लेकिन प्रशासनिक सुस्ती के चलते यह योजना अधर में लटकी रही।