Home क्षेत्रीय खबरें / अन्य खबरें जापानी इंसेफेलाइटिस के खात्मे में मदद करेगी एजोला घास, जानें क्या है...

जापानी इंसेफेलाइटिस के खात्मे में मदद करेगी एजोला घास, जानें क्या है इसमें खास

51
0

पूर्वी यूपी में मासूमों पर हर साल कहर बरपाने वाली जापानी इंसेफेलाइटिस का खात्मा अब घास से होगा। यह घास है एजोला। रिजनल मेडिकल रिसर्च सेंटर (आरएमआरसी) के विशेषज्ञ एजोला के जरिए इंसेफेलाइटिस के कारक मच्छरों का खात्मा करेंगे। इसके लिए गोरखपुर और देवरिया में इंसेफेलाइटिस के संवेदनशील गांवों का चयन हो रहा हैं।

जापानी इंसेफेलाइटिस बच्चों में फ्लेवी वायरस से हो रहा है। इस वायरस का वाहक सूअर या बगुला होता है। इंसानों को यह बीमारी क्यूलेक्स मच्छर काटने से होती है। यह मच्छर धान के खेतों में पाया जाता है। मच्छर जब सूअर या बगुला का खून चूसता है तो वायरस उसके शरीर में आ जाते हैं। यही मच्छर जब इंसानों का खून चूसता है तो वायरस इंसानों के शरीर में प्रवेश कर जाता है।

धान के खेत में होता है मच्छरों का प्रजनन 
बीआरडी मेडिकल कालेज में बने आरएमआरसी के निदेशक डॉ. रजनीकांत श्रीवास्तव ने बताया कि मादा क्यूलेक्स मच्छर सिर्फ धान के खेतों में रुके पानी में ही अंडे देती हैं। इसी वजह से ऐसे गांवों में बीमारी का प्रकोप सबसे ज्यादा है जहां गांव की सीमा से सटे धान के बड़े खेत हैं।

क्यूलेक्स मच्छरों को पनपने नहीं देगी एजोला 
उन्होंने बताया कि क्यूलेक्स मच्छर का जीवन चक्र पानी की ऊपरी सतह पर होता है। मच्छर के अंडे पानी की ऊपरी सतह पर रहते हैं। वहीं लार्वा बनते हैं। एजोला घास भी पानी की ऊपरी सतह पर ही तेजी से फैलती है। घास के दबाव से मच्छरों के अंडे पानी की निचली सतह में जाकर नष्ट हो जाएंगे। उनका जीवन चक्र टूट जाएगा। इसका प्रयोग गोरखपुर व देवरिया में इंसेफेलाइटिस के अति संवेदनशील गांवों में किया जाएगा। इसके लिए धान की खेती करने वाले किसानों को ट्रेनिंग दी जाएगी।

खाद व चारा भी बनेगी एजोला 
एजोला के कई फायदे हैं। इसके कारण खेत में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ जाती है। इससे धान का उत्पादन 15 फीसदी तक बढ़ सकता है। दुधारू पशुओं को खिलाने से दूध का उत्पादन बढ़ जाता है। किसान इसका प्रयोग मुर्गी पालन और मछली पालन में कर सकते हैं।

शैवाल जैसी होती है एजोला 
उन्होंने बताया कि एजोला जलीय पौधा है। यह शैवाल से मिलती-जुलती फर्न है। इसकी पंखुड़ियो में एनाबिना पाई जाती है। यह क्लोरोफिल की तरह से सूर्य के प्रकाश का संश्लेषण कर नाईट्रोजन का उत्पादन करती है।

47 साल से कहर बरपा रही इंसेफेलाइटिस 
पूर्वांचल के 32 जिलों के साथ ही पश्चिमी बिहार और नेपाल में 47 साल से इंसेफेलाइटिस कहर बरपा रही है। यह बीमारी ज्यादातर 16 वर्ष से कम उम्र के किशोरों और बच्चों को अपने चपेट में लेती है। इस बीमारी से बीआरडी मेडिकल कालेज में पांच दशक में करीब 10000 मरीजों की मौत हो चुकी है। करीब 40 हजार मरीज दिव्यांग हो चुके हैं।

जानलेवा है इंसेफेलाइटिस 
इसमें बच्चों में बुखार तेज होता है। बुखार सात से 14 दिन तक रहता है। सिर व मांसपेशियों में दर्द होने के साथ शरीर पर दाने निकल जाते हैं। कुछ मामलों में मरीज को झटका भी आता है। बीमारी बढ़ने पर मरीज के शरीर में महत्वपूर्ण अंग के काम पर भी असर डालता है। इससे मरीज की मौत भी हो सकती है।