बिलासपुर-
छत्तीसगढ़ के बिलासपुर शहर से करीब 25 किलोमीटर की दूरी पर मां महामाया की नगरी रतनपुर की पहचान देश और दुनिया में है। लेकिन, यह बहुत कम लोग ही जानते हैं कि यहां भगवान शिव की कुछ ऐसी प्रतिमाएं है, जिनका विशेष महत्व है। भैरव मंदिर में हर साल सावन के महीने में पार्थिव शिवलिंग का निर्माण कर विशेष पूजा आराधना की जा रही है, जिसमें प्रदेश भर से श्रद्धालु पहुंच रहे हैं। तो वहीं वृद्धेश्वरनाथ महादेव, जिन्हें बूढ़ा महादेव के नाम से जाना जाता है। यहां शिवलिंग पर चढ़ाया जल कहां जाता है इस रहस्य को अब तक कोई नहीं जान सका है।
भैरव मंदिर में 4 जुलाई से शुरू हुए सावन माह के पहले दिन से पार्थिव शिवलिंग का निर्माण चल रहा है, जो 29 अगस्त तक चलेगा। फिर त्रयोदशी तिथि तक पांच लाख पार्थिव शिव लिंग बनाकर पारद और स्फटिक शिव लिंग के साथ महा अभिषेक किया जाएगा।
अधिक सावन मास के पहले पर उमड़ी भक्तों की भीड़
सावन महीने का पहला सोमवार बीते 10 जुलाई और दूसरा सोमवार 17 जुलाई को था और अब आज तीसरा सोमवार है। खास बात यह है कि यह सावन महीने का तीसरा और अधिकमास का पहला सोमवार व्रत है। अधिक मास के पहले सोमवार पर रवि योग, शिव योग और सिद्ध योग है। इसके बाद अधिकमास में अन्य दो और सोमवार भी पड़ेंगे। अधिक मास के पहले सोमवार को भैरव बाबा मंदिर के साथ ही शिव मंदिरों में सुबह से भक्तों की भीड़ उमड़ गई। इस दौरान श्रद्धालुओं ने पार्थिव शिव लिंग बनाकर विशेष पूजा आराधना करते रहे
हर साल सवा लाख, अधिक सावन मास में पांच लाख पार्थिव शिवलिंग का होगा निर्माण
सिद्ध श्री भैरव तंत्र शक्ति पीठ के प्रमुख पुजारी पं. जागेश्वर अवस्थी ने बताया कि इससे पहले हर साल सावन मास में सवा लाख पार्थिव शिवलिंग का निर्माण और अभिषेक किया जाता था। लेकिन इस बार दो सावन पुरुषोत्तम मास होने के कारण पांच लाख पार्थिव शिवलिंग का निर्माण हो रहा है। शिव महापुराण में पार्थिव शिवलिंग निर्माण का विशेष महत्व बताया गया है।
प्रतिदिन रूद्राभिषेक औक विशेष पूजन
उन्होंने बताया कि यहां मंदिर में प्रति दिन रूद्राभिषेक किया जा रहा है। आचार्य गिरधारी लाल पाण्डेय के साथ ही पं दिलीप दुबे, पं राजेद्र दुबे, पं. महेश्वर पांडेय, पं. कान्हा तिवारी, पं. दीपक अवस्थी, पं. राजेंद्र तिवारी पूजा आराधना में सहयोगी हैं, जिनके द्वारा प्रतिदिन रूद्र महायज्ञ कर भगवान शिव को विशेष आहुति दी जा रही है।
सभी मनोकामना होती है पूरी
पं. जागेश्वर अवथस्थी ने बताया कि शिवपुराण में पार्थिव शिवलिंग पूजा का महत्व बताया गया है। कलयुग में कूष्माण्ड ऋषि के पुत्र मंडप ने पार्थिव पूजन प्रारम्भ किया था। शिव महापुराण के अनुसार पार्थिव पूजन से धन, धान्य, आरोग्य और पुत्र प्राप्ति होती है। वहीं मानसिक और शारीरिक कष्टों से भी मुक्ति मिल जाती है।
पार्थिव पूजा का महत्व
पार्थिव पूजन से अकाल मृत्यु का भय समाप्त होता है। शिवजी की अराधना के लिए पार्थिव पूजन सभी लोग कर सकते हैं, फिर चाहे वह पुरुष हो या फिर महिला। यह सभी जानते हैं कि शिव कल्याणकारी हैं। जो पार्थिव शिवलिंग बनाकर विधिवत पूजन अर्चना करता है, वह दस हजार कल्प तक स्वर्ग में निवास करता है। शिवपुराण में लिखा है कि पार्थिव पूजन सभी दुखों को दूर करके सभी मनोकामनाएं पूर्ण करता है। प्रति दिन पार्थिव पूजन किया जाए तो इस लोक और परलोक में भी अखण्ड शिव भक्ति मिलती है।
कैसे करें पार्थिव पूजन
पं. अवस्थी बताते हैं कि पूजन करने से पहले पार्थिव लिंग का निर्माण करना चाहिए। इसके लिए मिट्टी, गाय का गोबर, गुड़ , मक्खन और भस्म मिलाकर शिवलिंग बनाएं। शिवलिंग के निर्माण में इस बात का ध्यान रखें कि यह 12 अंगुल से ऊंचा नहीं हो। इससे अधिक ऊंचा होने पर पूजन का पुण्य प्राप्त नहीं होता है। मनोकामना पूर्ति के लिए शिवलिंग पर प्रसाद चढ़ाना चाहिए। इस बात का ध्यान रहे कि जो प्रसाद शिवलिंग से स्पर्श कर जाए, उसे ग्रहण नहीं करें।
नदी या तालाब की मिट्टी से बनाएं
उन्होंने बताया कि सावन मास में घर में भी पार्थिव पूजन करने से पहले पार्थिव शिवलिंग बनाकर पूजा अर्चना की जानी चाहिए। इसको बनाने के लिए किसी पवित्र नदी या तालाब की मिट्टी लें। फिर उस मिट्टी को पुष्प चंदन इत्यादि से शोधित करें। मिट्टी में दूध मिलाकर शोधन करें। फिर शिव मंत्र बोलते हुए उस मिट्टी से शिवलिंग बनाने की क्रिया शुरू करें। पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुंह रखकर शिवलिंग बनाना चाहिए।
पार्थिव शिवलिंग बनाने पहले इन देवों की करें पूजा
शिवलिंग बनाने के बाद भगवान गणेश, विष्णु भगवान, नवग्रह और माता पार्वती आदि का आह्वान करना चाहिए। फिर विधिवत तरीके से षोडशोपचार करना चाहिए। पार्थिव बनाने के बाद उसे परम ब्रम्ह मानकर पूजा और ध्यान करें। पार्थिव शिवलिंग समस्त मनोकामनाओं को पूर्ण करता है। सपरिवार पार्थिव बनाकर शास्त्रवत विधि से पूजन करने से परिवार सुखी रहता है
रोग से पीड़ित लोग करें महामृत्युंजय मंत्र का जप
पार्थिव के समक्ष समस्त शिव मंत्रों का जप करना चाहिए। रोग से पीड़ित लोग महामृत्युंजय मंत्र का जप भी कर सकते हैं। दुर्गासप्तशती के मंत्रों का जप भी किया जा सकता है। पार्थिव के विधि वत पूजन के बाद उनको श्री राम कथा भी सुनाकर प्रसन्न कर सकते हैं।
अब जानिए रतनपुर में शिव की अनोखी मूर्तियों का रहस्य
रतनपुर में ऐतिहासिक कृष्णार्जुनी तालाब के पास स्थित है सूर्येश्वर महादेव का मंदिर है। इसे अत्यंत प्राचीन मंदिर माना जाता है। कहते हैं कि पहले शिवलिंग पर पड़ने वाली किरणों से समय का निर्धारण होता था। शिवलिंग पर सूर्योदय और सूर्यास्त के समय सूर्यदेव की किरणें पड़ती हैं।
शिव मंदिर का इतिहास
मंदिर का निर्माण 11वीं शताब्दी में शिवभक्त राजा रत्नदेव ने करवाया था। सूर्य देव की सबसे पहली किरण इसी मंदिर में स्थित शिवलिंग पर पड़ती है। इससे मंदिर का नाम सूर्येश्वर महादेव पड़ा। मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन राजा मोरध्वज की परीक्षा लेने आए थे, तब मंदिर के पास तालाब के किनारे कुछ पल विश्राम किया था।
सूर्येश्वर महादेव मंदिर की विशेषता
मान्यता है कि भक्त आस्था और भक्ति के साथ कृष्णार्जुनी तालाब में स्नान करके सूर्येश्वर महादेव की पूजा करते हैं तो उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। इस वजह से मंदिर में हमेशा ही भक्तों की भीड़ लगी रहती है। वहीं सावन और शिवरात्रि में विशेष पूजा होती है। दूर-दूर से भक्त अपनी मनोकामना लेकर पहुंचते हैं। कल्चुरीकालीन छत्तीसगढ़ की राजधानी रतनपुर में मंदिर को वेधशाला और ज्योतिषि विज्ञान के केंद्र के रूप में भी उपयोग किया जाता था। समय निर्धारण के साथ ही ज्योतिष पंचांग का निर्माण भी इसी से होता था। मंदिर में सूर्यदेव की बलुआ पत्थर से बनी दुर्लभ प्रतिमा मंदिर की दीवार में अभी भी लगी हुई है। इसके साथ ही खंडित अवस्था में शिलालेख भी है।
वृद्धेश्वर शिवलिंग का जल हो जाता है गायब
रतनपुर में वृद्धेश्वरनाथ महादेव हैं। जिन्हें बूढ़ा महादेव के नाम से जाना जाता है। श्रावण मास में भगवान भोलेनाथ को जल चढ़ाने बड़ी संख्या में भक्त पहुंचते हैं। खास बात यह भी है कि इस शिवलिंग पर चढ़ाया जल कहां जाता है इस रहस्य को अब तक कोई नहीं जान सका है। शिवमहापुराण में भगवान वृद्धेश्वरनाथ महादेव का वर्णन है। रतनपुर स्थित शिव मंदिर का उल्लेख शिवमहापुराण में है। मां महामाया की नगरी रतनपुर को प्राचीन काल में शिव मंदिरों की अधिकता की वजह से लहुरी काशी के नाम से भी जाना जाता था। यहां पर रामटेकरी के ठीक नीचे स्थापित है। वृद्धेश्वरनाथ महादेवा लोक मान्यता के अनुसार इसे बूढा महादेव भी कहते हैं। वृद्धेश्वरनाथ महादेव मंदिर में स्थापित शिवलिंग स्वंयभू है। मंदिर के गर्भगृह में स्थित भगवान शिवलिंग की आकृति विस्मयकारी है। पार्थिव शिवलिंग के तल में स्थित जल देखने पर ऐसा प्रतीत होता है जैसे आकाशगंगा इसमें समाहित है।
शिवलिंग पर रावण के सिर चढ़ाने की प्रतिमा
रतनपुर के ही गज किले के प्रवेश द्वार पर अपनी तपस्या के दौरान रावण के अपने शीश चढ़ाने की प्रतिमा बनी हुई है। इसमें शिवलिंग पर रावण के पांच-छह सिर काट कर रखे दिख रहे हैं। पुरातत्वविद राहुल सिंह बताते हैं कि इसे रावण का अपना अहंकार अर्पित करने से भी जोड़कर देखा जाता है। कहा जाता है कि रावण ने भगवान शंकर के लिए किए गए यज्ञ में अपने सिर की आहुति दे दी थी।