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उत्तराखंड में पॉलिटिकल लैंडस्लाइड:20 साल का पहाड़ी राज्य आज अपना 13वां मुख्यमंत्री देखेगा, भाजपा ने 8 तो कांग्रेस ने 5 CM बनाए; हरीश रावत को कोर्ट ने 2 बार बहाल किया

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देश में प्राकृतिक आपदा से परेशान रहने वाला उत्तराखंड अपनी 20 साल की उम्र में पॉलिटिकल लैंडस्लाइड से भी अछूता नहीं रहा है। राज्य ने अपनी छोटी सी उम्र में ही 13 मुख्यमंत्री देख लिए। तीरथ सिंह रावत ने शुक्रवार को मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया। भाजपा विधायक दल की शनिवार को हुई बैठक में पुष्कर सिंह धामी के नाम पर मुहर लगा दी गई। 45 साल के धामी राज्य के 13वें मुख्यमंत्री होंगे। राज्य में अब तक के मुख्यमंत्रियों में सबसे युवा धामी रविवार शाम 5 बजे शपथ लेंगे।

इससे पहले 2016 में हरीश रावत की सरकार को 9 विधायकों के बगावत और केंद्र के राष्ट्रपति शासन लगाने और कोर्ट की दखल के बाद राष्ट्रपति शासन हटाकर 2 बार बहाल करना पड़ा। वहीं, भाजपा ने भी बीसी खंडूरी को दो बार मुख्यमंत्री पद पर रिपीट किया है।

उत्तराखंड के जन्म की बात करें तो पूर्व प्रधानमंत्री दिवंगत अटल बिहारी वाजपेयी ने 9 नवंबर 2000 को छत्तीसगढ़ और झारखंड के साथ उत्तर प्रदेश से अलग कर इस पहाड़ी राज्य की स्थापना की थी। उत्तराखंड को अभी 20 साल ही पूरे हुए हैं। यानी विधानसभा के 4 कार्यकाल के बराबर। इस दौरान हर चुनाव में भाजपा या कांग्रेस ने ही सरकारें बनाईं।

लेकिन यह राज्य का दुर्भाग्य रहा कि जहां कायदे से 4 मुख्यमंत्री (राज्य गठन के बाद हुए विधानसभा चुनाव के हिसाब से) होने चाहिए थे, वहां राजनीतिक अस्थिरता की वजह से इसने 13 CM देख लिए। भाजपा ने जहां 8 मुख्यमंत्री बनाए, वहीं कांग्रेस ने भी 5 मुख्यमंत्री (हरीश रावत एक कार्यकाल के बाद 2 बार सुप्रीम कोर्ट द्वारा बहाल किए गए) बनाए। कांग्रेस के नारायण दत्त तिवारी ही एकमात्र ऐसे मुख्यमंत्री रहे, जिन्होंने राज्य के राजनीतिक इतिहास में 5 साल का कार्यकाल पूरा किया।

भाजपा और कांग्रेस दोनों ही राष्ट्रीय पार्टियों को उत्तराखंड में शासन के लिए करीब 10-10 सालों का वक्त मिला है जिसमें कांग्रेस ने मुख्यमंत्री के 3 चेहरे दिए तो भाजपा अब तक 7 चेहरों (बीसी खंडूरी दो बार सीएम बने) को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठा चुकी है। भाजपा ने अपने 5-5 साल के दो शासनकालों में तीन-तीन मुख्यमंत्रियों को बदला है।

पहली बार स्वामी को भाजपा ने हटाया, कोश्यारी को सौंपी कमान
9 नवंबर 2000 को जब उत्तरप्रदेश से अलग राज्य उत्तराखंड बना तो भाजपा ने नित्यानंद स्वामी को अंतरिम सरकार की कमान सौंपी। अभी एक साल ही हुए थे कि भाजपा का स्वामी से मोहभंग हो गया। पार्टी की राज्य और राष्ट्रीय इकाई को ऐसा लगा कि स्वामी के नेतृत्व में साल 2002 में होने वाला विधानसभा चुनाव नहीं जीता जा सकता।

इसके बाद पार्टी ने भगत सिंह काेश्यारी (वर्तमान में महाराष्ट्र के राज्यपाल हैं) को राज्य की कमान सौंपी। हालांकि, पार्टी का अनुमान गलत साबित हुआ और इस साल हुए चुनाव में कांग्रेस ने पहली बार उत्तराखंड में अपनी सरकार बनाई। तब कांग्रेस ने नारायण दत्त तिवारी (अब दिवंगत) को मुख्यमंत्री बनाया। तब हरीश रावत कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष हुआ करते थे।

रावत और तिवारी के बीच अनबन की खबरें आती रहीं, लेकिन राजनीति के मंझे हुए खिलाड़ी एनडी तिवारी ने तमाम मुश्किलों के बावजूद भी अपने पांच साल का कार्यकाल पूरा किया।

20 साल में भाजपा ने 8 मुख्यमंत्री बनाए, सबसे छोटा कार्यकाल तीरथ का

  1. नित्यानंद स्वामी: 9 नवम्बर 2000 से 29 अक्टूबर 2001, 354 दिन
  2. भगत सिंह कोश्यारी: 30 अक्टूबर 2001 से 1 मार्च 2002, 122 दिन
  3. भुवन चन्द्र खंडूरी: 8 मार्च 2007 से 23 जून 2009, 839 दिन
  4. रमेश पोखरियाल निशंक: 24 जून 2009 से 10 सितम्बर 2011, 808 दिन
  5. भुवन चन्द्र ख्रंडूरी: 11 सितम्बर 2011 से 13 मार्च 2012,185 दिन
  6. त्रिवेन्द्र सिंह रावत: 18 मार्च 2017 से 9 मार्च 2021, 1567 दिन
  7. तीरथ सिंह रावत: 10 मार्च 2021 से 2 जुलाई 2021, 115 दिन
  8. पुष्कर सिंह धामी: 4 जुलाई 2021 से जारी…

2007 में भाजपा ने 3 बार मुख्यमंत्री बदले, चेहरा दो रहे
2007 के चुनाव में एक बार फिर भाजपा की सरकार में वापसी हुई और मेजर जनरल भुवन चंद्र खंडूरी को मुख्यमंत्री बनाया गया। खंडूरी को सत्ता संभाले अभी दो साल ही हुए थे कि खंडूरी के काम करने के तरीकों पर सवाल उठने लगे। प्रदेश नेतृत्व ने राष्ट्रीय नेताओं को बताया कि खंडूरी को लेकर पार्टी विधायकों में नाराजगी है, इसलिए चेहरा बदलना होगा।

लिहाजा खंडूरी की विदाई हो गई और पार्टी ने रमेश पोखरियाल निशंक के रूप में पहली बार एक ब्राह्मण चेहरे को राज्य का मुख्यमंत्री बनाकर इस धार्मिक शहरों वाले राज्य को बड़ा मैसेज देने की कोशिश की। हालांकि यह चेहरा भी ज्यादा दिनों तक नहीं टिक सका।

2012 के विधानसभा चुनाव में एक बार फिर पार्टी को चेहरे की चिंता सताने लगी। इसलिएएक बार फिर बीसी खंडूरी का राजतिलक हुआ और उन्हें चुनावी चेहरे के तौर पर सत्ता की बागडोर सौंपी गई, लेकिन भाजपा का ये अरमान भी आंसुओं में बह गया। पार्टी 2012 का चुनाव तो हारी ही, खुद खंडूरी भी अपनी सीट नहीं बचा पाए।

राज्य में दो बार लगा राष्ट्रपति शासन

  • 27 मार्च 2016 से 21 अप्रैल 2016, 25 दिन
  • 22 अप्रैल 2016 से 11 मई 2016, 19 दिन

2012 में कांग्रेस सत्ता में लौटी, लेकिन पार्टी में फूट पड़ गई
2012 में 70 विधानसभा सीटों पर हुए चुनाव में भाजपा ने 31 और कांग्रेस ने 32 सीटें जीतीं। बहुमत के आंकड़े से दोनों दल दूर थे। आखिरकार बसपा के 3, उत्तराखंड क्रांति दल के 1 और 3 निर्दलीयों के सहयोग से कांग्रेस ने सरकार बनाई। मुख्यमंत्री की कुर्सी पर विजय बहुगुणा की ताजपोशी हुई। जब 2013 में केदारनाथ में भयानक बाढ़ आई, तब बहुगुणा की नीतियों और कार्यशैली पर सत्तापक्ष और विपक्षी नेताओं ने सवाल उठाने शुरू कर दिए। घटना इतनी बड़ी थी कि कांग्रेस ने नेतृत्व पर उठते सवालों को देखते हुए चेहरा बदला। कांग्रेस ने बहुगुणा को हटाकर हरीश रावत को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठाया।

कांग्रेस में फूट, उठापटक में फंसी हरीश रावत की सरकार
हरीश रावत को भी सत्ता ज्यादा दिन नहीं भाई। अभी दो साल ही हुए थे कि पार्टी के विधायकों ने रावत के खिलाफ बगावत का बिगुल फूंक दिया। कांग्रेस के 9 विधायक पार्टी से बगावत कर चुके थे। सरकार अल्पमत में आ गई। राज्य में राजनीतिक स्थिरता को देखते हुए 27 मार्च 2016 को राज्य में पहली बार राष्ट्रपति शासन लगाया गया।

केंद्र में भाजपा की सरकार थी। मामला नैनीताल हाईकोर्ट पहुंचा। हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार को पुरानी स्थिति बहाल करने का निर्देश दिया और हरीश रावत को मुख्यमंत्री पद पर बहाल कर दिया। 9 बागी विधायकों की सदस्यता चली गई, लेकिन रावत और कांग्रेस की यह खुशी 24 घंटे भी नहीं टिक सकी।

हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई। केंद्र ने हाईकोर्ट के फैसले पर स्टे लगाने की मांग की, जिसे शीर्ष कोर्ट ने स्वीकार कर लिया। राजनीतिक उठापटक और मानमनौवल के खेल में रावत फेल हो गए और 25 दिन के अंदर राज्य में दूसरी बार 19 दिनों के लिए राष्ट्रपति शासन लगाया गया।

मामला कोर्ट में था। 19 दिन की सुनवाई के बाद इस बार सुप्रीम कोर्ट ने राज्य से राष्ट्रपति शासन हटाने का आदेश दिया। इसके साथ ही रावत मुख्यमंत्री के पद पर दोबारा बहाल कर दिए गए। इस तरह रावत ने अपना 311 दिन का बचा हुआ कार्यकाल पूरा किया, लेकिन 2017 के चुनाव में पार्टी को सबसे बुरी हार से नहीं बचा सके।

कांग्रेस के चेहरे तीन, लेकिन मुख्यमंत्री 5 रहे

  1. नारायण दत्त तिवारी: 2 मार्च 2002 से 7 मार्च 2007, 5 साल
  2. विजय बहुगुणा: 13 मार्च 2012 से 31 जनवरी 2014, 690 दिन
  3. हरीश रावत: 1 फरवरी 2014 से 27 मार्च 2016, 785 दिन
  4. हरीश रावत: 21 अप्रैल 2016 से 22 अप्रैल 2016, 1 दिन (नैनीताल हाईकोर्ट ने बहाल किया)
  5. हरीश रावत: 11 मई 2016 से 18 मार्च 2017, 311 दिन (सुप्रीम कोर्ट ने बहाल किया)

2017 में भाजपा ने 5 साल से पहले ही तीन चेहरे बदल डाले
2017 के विधानसभा चुनाव में एक बार फिर भाजपा ने जोरदार वापसी की। इस बार पार्टी ने त्रिवेंद सिंह रावत को राज्य की बागडोर सौंपी। रावत की कार्यशैली भी पार्टी को नहीं पची। उनके कुछ राजनीतिक फैसलों ने धार्मिक शहरों वाले इस राज्य के बड़े धर्म गुरुओं को नाराज कर दिया।

आखिरकार उन्हें भी 9 मार्च 2021 को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा। इस बार पार्टी ने एक बार फिर सबको चौंकाते हुए तीरथ सिंह रावत को मुख्यमंत्री बनाया, लेकिन अपने विवादित बयानों और कार्यशैली के कारण पार्टी ने साढ़े तीन महीने में ही तीरथ से इस्तीफा ले लिया। अब पार्टी ने तीरथ की जगह पुष्कर सिंह धामी को अपना नेता बनाया है।

विद्यार्थी परिषद से छात्र राजनीति की शुरुआत करने वाले धामी उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रहे और वर्तमान में महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के ओएसडी और भाजपा युवा मोर्चा के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। बहरहाल, अब देखना यह है कि फरवरी 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव में पुष्कर सिंह धामी का युवा चेहरा पार्टी के लिए कितना फायदेमंद होता है।