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कौन हैं ‘बस्तर के गांधी’ धर्मपाल सैनी जिन्होंने नक्सलियों के कब्जे से कोबरा कमांडो की रिहाई में निभाई अहम भूमिका

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रायपुर
नक्सलियों से मुठभेड़ के 6 दिन बाद रिहा हुए जवान की सकुशल वापसी में जिस एक व्यक्ति की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका मानी जा रही है, वे हैं बस्तर के गांधी कहे जाने वाले धर्मपाल सैनी। कहा जा रहा है कि अपह्रृत जवान की सुरक्षित रिहाई सुनिश्चित कराने के लिए खुद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने सैनी से बात की थी। 92 साल के सैनी को बालिका शिक्षा के क्षेत्र में योगदान के लिए 1992 में पद्मश्री से सम्मानित किया जा चुका है। 2012 में ‘द वीक’ मैगजीन ने उन्हें मैन ऑफ द इयर चुना था।

धर्मपाल सैनी करीब 45 साल पहले पहली बार बस्तर आए थे। एक बार आए तो फिर यहीं के होकर रह रह गए। उनके यहां आने के बाद से बस्तर का साक्षरता अनुपात 10 प्रतिशत से बढ़कर करीब 50 प्रतिशत हो चुका है। इतना ही नहीं, वे अब तक 2 हजार से ज्यादा एथलीट तैयार कर चुके हैं और उनके आश्रम में पढ़ी जाने कितनी लड़कियां आज डॉक्टर, इंजीनियर और प्रशासनिक अधिकारी बन चुकी हैं।

मूलतः मध्य प्रदेश के धार जिले के रहने वाले सैनी की बस्तर आने की कहानी भी बड़ी रोचक है। सैनी भूदान आंदोलन के प्रणेता विनोबा भावे के शिष्य थे। बरसों पहले उन्होंने बस्तर में लड़कियों से संबंधित एक खबर पढ़ी थी। खबर के अनुसार दशहरा के मेले से लौटने के दौरान कुछ लड़कों ने लड़कियों के साथ छेड़छाड़ कर दी। लड़कियों ने उन लड़कों के हाथ-पैर काट कर उनकी हत्या कर दी थी। सैनी इस खबर से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने उसी समय बस्तर आने और यहां की लड़कियों के लिए कुछ करने का फैसला कर लिया था।

हालांकि, इसके बाद भी बस्तर आने में उन्हें कई साल लग गए। सैनी ने अपने गुरु विनोबा भावे से बस्तर जाने की अनुमति मांगी, लेकिन वे नहीं माने। कई बार आग्रह करने के बाद विनोबा भावे जी ने उन्हें 5 रुपये का एक नोट देकर बस्तर के लिए इस शर्त पर विदा किया कि वे कम से कम दस साल वहां रहेंगे।

आगरा यूनिवर्सिटी से कॉमर्स ग्रेजुएट सैनी खुद भी एथलीट रहे हैं। वे बताते हैं कि जब वे बस्तर आए तो यह देख कर आश्चर्यचकित रह गए कि यहां छोटे-छोटे बच्चे भी 15 से 20 किलोमीटर आसानी से चल लेते हैं। उन्होंने बच्चों की इस क्षमता को खेल और शिक्षा में इस्तेमाल करने की योजना बनाई। सैनी के डिमरापाल स्थित आश्रम में आज हजारों की संख्या में मेडल्स और ट्रॉफियां रखी हुई हैं। आश्रम की छात्राएं अलग-अलग खेलों में ईनाम के रूप में 30 लाख रुपये से ज्यादा की राशि जीत चुकी हैं।

जानकारी के मुताबिक सैनी बीते कई महीनों से सरकार और नक्सलियों के बीच शांति वार्ता के लिए प्रयास कर रहे थे। वे धीरे-धीरे इस दिशा में आगे बढ़ रहे थे, लेकिन बीच में केंद्रीय बलों ने नक्सलियों के खिलाफ ऑपरेशन छोड़ दिया। नतीजा यह हुआ कि बातचीत की प्रक्रिया शुरू होने से पहले ही पटरी से उतर गई। राकेश्वर सिंह के नक्सलियों के कब्जे में होने की पुष्टि होने के बाद जब मुख्यमंत्री बघेल ने उनसे अनुरोध किया तो सैनी एक्टिव हुए और उनकी रिहाई में अहम भूमिका निभाई।