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स्कॉर्पियो की कांच से पकड़े गए सचिन वाझे, जानें कैसे पुलिस को मिला अहम सुराग

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मुंबई
सचिन वाझे ने जब मुकेश अंबानी की एंटीलिया बिल्डिंग के बाहर जिलेटिन से भरी स्कॉर्पियो खड़ी करने की साजिश रची, तो अन्य फर्जी कामों के अलावा उन्होंने स्कॉर्पियो की मूल नंबर प्लेट को हटाकर उस पर आगे- पीछे फर्जी नंबर प्लेट लगा दीं। उसके चेसिस व इंजन नंबर भी इरेज करवाए। वाझे ने सोचा कि इतने फर्जीवाडे के बाद कोई स्कॉर्पियो के मूल मालिक तक कभी नहीं पहुंच पाएगा। लेकिन एक कहावत की तरह कि हर अपराधी कोई न कोई अपना सुराग छोड़ ही जाता है, उन्होंने स्कॉर्पियो गाड़ी में अहम सुराग छोड़ दिया और वह था कि स्कॉर्पियो की एक कांच पर बहुत ही महीन सा लिखा गाड़ी का मूल नंबर।

स्कॉर्पियो की कांच पर पड़ी एक अधिकारी की नजर
इस केस की जांच से जुड़े एक अधिकारी ने हमें बताया कि 25 फरवरी को देर शाम जब इस गाड़ी में जिलेटिन रखे जाने वाली बात सामने आई, तो बम निरोधक दस्ते और फॉरेंसिक टीम की जांच के बाद इस स्कॉर्पियो को मुकेश अंबानी की बिल्डिंग से हटाकर येलो गेट पुलिस के परिसर में खड़ा कर दिया गया। वहां क्राइम ब्रांच और एटीएस की अलग-अलग टीमें पहुंचीं। उनमें से एक अधिकारी की नजर स्कॉर्पियो के एक कांच पर पड़ी। उसमें बहुत ही छोटा-छोटा गाड़ी का नंबर लिखा हुआ था। उस अधिकारी ने उसका फोटो खींचा और फिर अपने सिस्टम में जाकर उस नंबर के मालिक का डिटेल निकाला।

पीटर न्यूटन से हिरेन मनसुख तक पहुंची पुलिस
पता चला कि यह डॉक्टर पीटर न्यूटन के नाम रजिस्टर्ड है। जब उनके लोगों तक जांच टीमें पहुंची, तो बताया गया कि कुछ पैसों के लेन-देन की वजह से यह गाड़ी तो पिछले तीन साल से हिरेन मनसुख के पास थी। फिर मनसुख को संपर्क किया गया, तो उन्होंने बताया कि उनकी गाड़ी 17 फरवरी को विक्रोली में चोरी हो गई थी और उन्होंने लोकल पुलिस स्टेशन में 18 फरवरी को एफआईआर भी करवाई थी।

विक्रोली पुलिस से मिली जानकारी
इसके बाद जांच टीम विक्रोली पहुंची और एफआईआर दर्ज करनेवाले सब इंस्पेक्टर, उस वक्त के डयृटी अधिकारी और जांच अधिकारी से पूछताछ शुरू की। पर विक्रोली पुलिस की कहानी से पहले अभी स्कॉर्पियो की कहानी पर ही फोकस बरकरार रखते हैं। हिरेन मनसुख के परिवार वालों का कहना है कि यह स्कॉर्पियो सचिन वाझे के पास नवंबर से 5 फरवरी तक थी। मनसुख के परिवार वालों का यह भी कहना है कि खुद मनसुख भी इसे पिछले तीन साल से यूज कर रहे थे। लेकिन कमाल यह है कि न तो मनसुख तीन साल में और न ही सचिन वाझे चार महीने में स्कॉर्पियो के एक कांच पर बहुत बारीक से लिखे मूल नंबर को पढ़ पाए। इसलिए वाझे ने गाड़ी के नीचे आगे-पीछे तो फर्जी नंबर प्लेट लगा दिए, लेकिन कांच पर मूल नंबर का सुराग छोड़ गए।

किस्सा विक्रोली की फर्जी FIR का
अब आते हैं विक्रोली पुलिस स्टेशन में 18 फरवरी को दर्ज उस एफआईआर पर, जिसमें स्कॉर्पियो के चोरी होने की शिकायत दर्ज हुई थी। अभी जो तथ्य सामने आ रहे हैं, वह बता रहे हैं कि यह गाड़ी कभी चोरी हुई ही नहीं। हिरेन मनसुख ने 17 फरवरी की रात यह गाड़ी विक्रोली में खड़ी की। वहां से एक कैब बुक कराई। वह इसमें बैठकर सीएसटी आए, वहां मर्सिडीज गाड़ी में बैठे सचिन वाझे को इसकी चाबी दी। वाझे ने यह चाबी अपने सिपाही को दी।

ठाणे तक स्कॉर्पियो को लाया था सिपाही
वह विक्रोली से इसे उठाकर वाझे की ठाणे की साकेत बिल्डिंग के बाहर ले गया। वहां यह गाड़ी दो दिन खड़ी रही। इसके बाद वाझे का ही सिपाही वहां से इस गाड़ी पुलिस मुख्यालय लाया। 19 से 21 फरवरी तक यह यहां खड़ी रही। बाद में फिर से वाझे की बिल्डिंग पहुंच गई और बाद में 25 फरवरी को खुद वाझे ने इसे ड्राइव कर मुकेश अंबानी की बिल्डिंग के बाहर खड़ा कर दिया और पीछे खड़ी CIU की इनोवा में बैठकर वहां से चले गए। इस बीच सचिन वाझे के कहने पर हिरेन मनसुख ने 18 फरवरी को विक्रोली पुलिस स्टेशन में स्कॉर्पियो के चोरी होने की एफआईआर दर्ज कराई।

वाझे के कहने पर दर्ज कराई थी चोरी की एफआईआर
इस केस की जांच से जुड़े एक अधिकारी ने एनबीटी को बताया कि विक्रोली में जिस जगह पर स्कॉर्पियो खड़ी की गई, वहां पांच किलोमीटर तक कोई सीसीटीवी कैमरा नहीं है। इसका मतलब यह है कि गाड़ी चोरी का कहानी प्लांट करने से पहले इस बात की पहले से रेकी कर ली गई थी कि किस जगह पर गाड़ी पार्क की जाए, जहां सीसीटीवी कैमरे न हों, ताकि चोरी का असली कहानी का भंडाफोड़ न हो सके। इस अधिकारी के अनुसार, कोई भी गाड़ी जब चोरी होगी, तो कार मालिक के पास उसकी चाबी तो होगी ही। इसलिए जब सचिन वाझे के कहने पर हिरेन मनसुख विक्रोली पुलिस स्टेशन में एफआईआर दर्ज कराने 18 फरवरी को आए, तो उसी वक्त वहां पुलिस अधिकारियों को पूछना चाहिए था कि गाड़ी की चाबी किधर है?

मनसुख से चाबी क्यों नहीं मांगी!
चूंकि हिरेन मनसुख कोई पेशेवर क्रिमिनल नहीं थे, इसलिए पुलिस अधिकारियों के इस सवाल से ही तत्काल हकला जाते, हड़बड़ा जाते। यदि वह झूठ भी बोल देते कि चाबी घर में है, तो पुलिस अधिकारियों को उनसे कहना चाहिए था कि ठीक है, घर में अभी विडियो कॉलिग करो। घर वालों को बोलकर हमें विडियो में दिखाओ कि स्कॉर्पियो की चाबी घर में कहां रखी है? उसी वक्त दूध का दूध और पानी का पानी हो जाता, क्योंकि चाबी तो मनसुख सचिन वाझे को देकर आए थे। इस झूठ के पकड़ में आते ही स्कॉर्पियो की चोरी की कभी एफआईआर दर्ज ही नहीं होती और हो सकता था कि खुद मनसुख पर ही झूठी कहानी प्लांट करने की एफआईआर दर्ज हो जाती। उस वक्त, वह सचिन वाझे का नाम लेते ही लेते, तब वाझे भी नप जाते।