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पूरी तरह से रेलवे से जान छुड़ाने की फिराक में मोदी सरकार, जल्द हटा दिए जाएंगे लाखों कर्मचारी

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अब रेल बजट तो पेश होता नहीं इसलिए आम बजट को जरा ध्यान से सुनिए-पढ़िए। और यह इसलिए नहीं कि किराया या माल भाड़ा कितना बढ़ा, किस जोन में कौन सी नई ट्रेन शुरू हुई है। सुनना-पढ़ना यह चाहिए कि नरेंद्र मोदी-अमित शाह राज में कितने लाख रेल कर्मचारी हटाए जाने के संकेत हैं, कितनी रेल फैक्ट्रियों और ट्रेनों को कब तक निजी हाथों में सौंप देने की तैयारी है, कौन-कौन-सी रियायतें कम होने जा रही हैं और किन वजहों से किराया कितना बढ़ने जा रहा है।

दरअसल मोदी सरकार रेल भी नहीं चला पा रही और इस कारण रेलकर्मियों की छंटनी उसकी प्राथमिकता है। रेलवे में लगभग 13 लाख 80 हजार कर्मचारी हैं। इनमें से 6 लाख 80 हजार कर्मियों, मतलब लगभग आधे कर्मचारियों, को चरणबद्ध तरीके से बाहर का रास्ता दिखाया जाएगा और आउटसोर्सिंग को बढ़ावा दिया जाएगा। तर्क यह है कि इससे वित्तीय संकट में घिरी रेलवे में सुधार होगा और वह मुनाफे की पटरी पर चलेगी। इसके लिए ऊपर से नीचे- हर स्तर पर काम किया जा रहा है।

मोदी सरकार ने दिसंबर में रेलवे बोर्ड के पुनर्गठन और रेलवे के आठ कैडरों के विलय की मंजूरी दी है। बोर्ड में आठ की जगह चार सदस्य कर दिए गए हैं और रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष को मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) के अधिकार दिए गए हैं। यह कॉरपोरेट हाउसों- जैसी व्यवस्था है। इससे जरूरत पड़ने पर बोर्ड के चारों सदस्यों के फैसलों को सीईओ जब चाहे बदल सकता है, जबकि वर्तमान में सभी सदस्य अपने क्षेत्र के सुपर एक्सपर्ट माने जाते रहे हैं।

यह तो सच है कि भारतीय रेल गंभीर वित्तीय संकट में फंस चुकी है। लेकिन इसके लिए खुद पर जिम्मेवारी लेने की जगह सरकार इसका ठीकरा कर्मचारियों पर फोड़ रही है। तर्क यह है कि रेलवे का 67 फीसदी पैसा कर्मियों के वेतन, भत्ते और पेंशन मद में खर्च हो रहा है। रेल मंत्री पीयूष गोयल की अध्यक्षता में 7 और 8 दिसंबर को हुई परिवर्तन संगोष्ठी में हार्वर्ड बिजनेस स्कूल और विश्व बैंक के अध्ययन के हवाले से कहा गया है कि 1.07 लाख रूट किलोमीटर रेल चलाने में रेलकर्मियों (सेवानिवृत्त सहित) के वेतन, भत्ते, पेंशन आदि पर कुल 67 फीसदी धन खर्च हो रहा है, जबकि चीन में 1.60 लाख किलोमीटर रेल चलाने वाले कर्मचारियों की संख्या सात लाख है और उन पर महज 20 फीसदी धन खर्च किया जाता है। इसके तहत रेलवे बोर्ड, रेल मंत्रालय और जोनल डिविजन में अधिकारियों और कर्मचारियों की संख्या 45 से 50 फीसदी तक कम करने की योजना बनाई गई है।

इस संगोष्ठी में बांटे गए दस्तावेज के मुताबिक, तकनीकी और आधुनिकीकरण की मदद से अगले तीन साल में रेलवे में 10 फीसदी, मतलब एक लाख 30 हजार, कर्मचारियों को कम किया जा सकता है। दूसरे चरण में 30 फीसदी और 2025- 26 तक रेलवे में कर्मचारियों की संख्या को 50 फीसदी तक घटाने की योजना है। इस प्रकार रेलवे में छह लाख 50 हजार कर्मचारियों को हटाने का ब्लूप्रिंट तैयार है। दस्तावेज कहता है कि आकर्षक और लाभप्रद स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति योजना से यह संभव है।

रेलवे में 30 साल नौकरी कर चुके या 55 साल आयु के कर्मचारियों पर अनिवार्य-असामयिक सेवानिवृत्ति की तलवार पहले ही लटकी हुई है। रेलवे प्रशासन सशक्त बनाने और खर्चो में कटौती के नाम पर सभी 17 जोन में ऐसे सी व डी श्रेणी के कर्मियों का डाटा तैयार कर रहा है। जानकारों का कहना है कि सरकार फंडामेंटल रूट (एफआर) के सेक्शन 56 के तहत कर्मचारी को नौकरी से बाहर निकाल सकती है। इसमें कर्मियों को दो से तीन माह का वेतन दिया जाता है। पेंशन-अन्य देय लाभ उन्हें मिलेंगे। ध्यान रहे कि पिछले दिनों एक दर्जन वरिष्ठ रेल अधिकारियों को सरकार ने सेवानिवृत्त कर दिया है। 50 साल की आयु वाले अन्य रेल अफसरों को समीक्षा के बाद नौकरी से बाहर किया जाएगा। इसमें रेलवे के 50 साल आयु के डॉक्टर भी शामिल हैं।

इस तरह भी कम होंगे कर्मचारी

रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष विनोद कुमार यादव ने पिछले साल के अंतिम दिन पत्रकार वार्ता में बताया कि सात फैक्ट्रियों के निगमीकरण के लिए रेलवे का सार्वजनिक उपक्रम राइट्स अध्ययन कर रहा है। इसकी रिपोर्ट आने के बाद निगमीकरण के तहत फैक्ट्रियों को आधुनिक बनाया जाएगा। दुनिया भर से नई श्रेष्ठ तकनीक का उपयोग कर भविष्य में फैक्ट्रियों में बनने वाले इंजन-कोच-वैगन का निर्यात किया जाएगा। साल 2017-18 में मॉडर्न कोच फैक्ट्री, रायबरेली को आधुनिक बनाने के लिए 400 करोड़ से अधिक का निवेश किया जा चुका है। फैक्ट्री में आधुनिक मशीन लगाई गई है। यह दीगर बात है कि कोच उत्पादन रोबोट के जरिये हो रहा है।

स्वाभाविक है कि जब कर्मचारियों की जरूरत ही नहीं होगी, तो उन्हें रखा ही क्यों जाएगा? निगमीकरण व्यवस्था लागू होने पर फैक्ट्रियों में महाप्रबंधक के स्थान पर चीफ एक्जीक्यूटिव ऑफिसर (सीईओ) काम करेंगे। रेलवे में सात फैक्ट्रियां हैं। वे सभी एक कंपनी के नीचे काम करेंगी। सरकार अगले तीन महीने में भारतीय रेल रोलिंग स्टॉक कंपनी (आईआरआरएससी) के गठन के लिए अध्ययन का काम पूरा कर लेगी। जानकारों का कहना है कि निगमीकरण से फैक्ट्रियों में ठेके पर कर्मियों की नियुक्तियां होंगी। फैक्ट्रियों को अपना खर्च खुद उठाना होगा। आवश्यकता पड़ने पर सरकार धन का प्रबंधन कर सकती है। लेकिन यह बाध्यकारी नहीं होगा। सरकार कभी भी घाटा बताकर फैक्ट्री को निजी हाथों में सौंप सकती है।

आम लोगों को भी भूलनी होंगी रियायतें

कभी आपने अपना रेल टिकट देखा है? उसमें एक वाक्य पिछले करीब तीन साल से लिखा जाने लगा है, “क्या आप जानते हैं कि आपकी टिकट के 43 फीसदी हिस्से का भार देश का आम आदमी वहन कर रहा है?” इसकी याद दिलाने के पीछे खास वजह है। रेलवे 12.5 हजार यात्री ट्रेनों और 10 हजार मालगाड़ियों का परिचालन करती है। सरकार यात्री ट्रेनों से हर तरह की रियायत कम करने और कहीं से भी पैसा कमाने की हरसंभव कोशिश कर रही है।

इसके लिए नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) की रिपोर्ट को भी हथियार बनाने की कोशिश है। सीएजी ने संसद के शीतकालीन सत्र में पेश अपनी रिपोर्ट में भारतीय रेल की जो बैलेंस शीट पेश की, उसमें वस्तुतः सरकार को आईना दिखाया गया है। इसमें कहा गया है कि रेलवे पिछले एक दशक में आर्थिक मोर्चे पर सबसे खराब दौर में है। 2018 में रेलवे में सबसे खराब ऑपरेटिंग अनुपात 98.44 फीसदी रहा, यानी रेलवे 100 रुपये कमाने के लिए 98.44 रुपये खर्च कर रही है जो पिछले 10 वर्षो में सबसे खराब है।

इन बातों पर तो सरकार का ध्यान नहीं है लेकिन उस रिपोर्ट के इस अंश को हथियार बना लिया गया है कि सामाजिक दायित्व निभाने के लिए रेलवे जनता को आवश्यकता अनुसार 53 प्रकार से किराये में छूट दोती है। रिपोर्ट में कहा गया है कि 2015-16 से 2017-18 (तीन वर्ष) के बीच रेलवे ने विभिन्न रियायती मदों में 7418.44 करोड़ रुपये खर्च किए। इनमें सर्वाधिक वरिष्ठ नागरिकों पर 3894.32 करोड़ (52.5 फीसदी) और 2759.25 करोड़ रुपये (37.2 फीसदी) रेलकर्मियों को रियायत देने पर खर्च हुए जबकि रियायत का 10 फीसदी धन दिव्यांग, कैंसर और अन्य गंभीर रोगियों तथा मीडियाकर्मियों पर खर्च हुआ। ध्यान रहे कि रेलवे यात्री किराये में 58 साल आयु की महिला को 50 फीसदी और 60 वर्षीय पुरुष को 40 फीसदी रियायत देती है। सीएजी ने कहा कि रेलवे रियायतों को युक्ति संगत करना चाहिए अथवा प्रतिबंध लगाना चाहिए। सीएजी ने कहा है कि रेलवे को 2018 में 37936.68 करोड़ रुपये यात्री किराये के मद में नुकसान हुआ था। इसलिए अब आने वाले दिनों में कई किस्म की रियायतें कम होती जाएं, तो आश्चर्य नहीं।