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भिलाई – कुपोषण के लिए मिला फंड

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कुपोषण दूर करने के लिए छत्तीसगढ़ के स्कूलों में अंडे सप्लाई करने की योजना विवाद में उलझ गई है। इसके कारण स्कूलों में अंडे की सप्लाई नहीं हो पा रही है। वहीं प्राथमिक स्कूलों में हर बच्चे को सप्ताह में तीन बार 150 एमएल देने के लिए जो सोया दूध भेजा जा रहा उसका स्वाद इतना खराब है कि 


बच्चे फेंक रहे हैं। दंतेवाड़ा, बस्तर, कांकेर, कबीरधाम के आदिवासों इलाकों में रहन-सहन, खान-पान का तौर तरीके बदलने के लिए कोई अभियान नहीं चलाने से सबकुछ रहते हुए सुपोषण की योजनाएं फेल हो रही हैं।   कुपोषण से सुपोषण के लिए केंद्र व राज्य सरकार लाखों रुपए का बजट दे रही है, लेकिन जिम्मेदार हर साल 25 प्रतिशत का इस्तेमाल ही नहीं कर पा रहे हैं। यही नहीं मध्याह्न भोजन में शामिल करने के लिए रायपुर से सोयाबीन बड़ी भेजी जा रही है, लेकिन वह मिस-मैनेजमेंट के कारण जहां जरूरत नहीं वहां भेज दी जा रही है। भिलाई में ऐसा ही होने के कारण 200 से ज्यादा स्कूलों के बच्चों के लिए भेजी सोयाबीन बड़ी रखे-रखे ही खराब हो रही हैं।

जिम्मेदारों को किस साल मिला कितना धन

  • 2014-15 में – 165761.78 लाख रुपए
  • 2015-16 में- 179656.93 लाख रुपए
  • 2016-17 में- 491388.31 लाख रुपए
  • 2017-18 में- मिश्रात तौर अलग-अलग
  • 2018-19 में- 183714.45 लाख रुपए

यह भी वजह
आंगनबाडिय़ों में कुपोषित से सुपोषित के लिए मात्र 7 रुपए

आंगनबाड़ियों में कुपोषण दूर करने के लिए बच्चा मां के गर्भ में आने से लेकर 6 वर्ष तक गतिविधियां संचालित होती रहती है। लेकिन इसके लिए बजट के तौर पर बच्चा प्रतिदिन मात्र 7 रुपए खर्च किया जाता है। इसी में आंगनबाड़ी सहायिका ऐसे बच्चों को नाश्ते में एक दिन हलवा और एक दिन पोहा, गर्भवती तथा बच्चों को दोपहर का गरम खाना और घर के लिए पौष्टिक आहार (रेडी टू ईट) दिया जाता है।

स्कूलों में 6.48 रुपए में दाल, चावल और सब्जी भी
कुपोषण और अशिक्षा दूर करने के लिए स्कूलों में मध्याह्न भोजन योजना संचालित है। इसके लिए एक बच्चे पर 6.48 रुपए सरकार की ओर से मिलता है। इसी पैसे में ग्रामीण समितियां हर बच्चे के लिए दाल, चावल और लजीज सब्जी का इंतजाम कर रही है। खाना बनाने के लिए इंधन व बर्तनों की सफाई भी इसी पैसे में से करनी है।

कुपोषित बच्चों के लिए जिले में मात्र 10 बेड के अस्पताल
कुपोषण बच्चों को बीमारियों से बचाने के लिए प्रदेश के प्रमुख जिलों में ही 10 बेड के अस्पताल संचालित है। सिस्टम की लापरवाही के कारण कुपोषण का आंकड़ा ज्यादा होने के बाद भी 10 बेड में से ज्यादातर अक्सर खाली रहते हैं। हर कुपोषित बच्चों को सुपोषित करने के लिए बीमारियों से बचाने में लापरवाही हो रही है।


73 हजार में से 5 हजार को पौष्टिक आहार, शेष काे रेडी टू ईट
जगदलपुर जिले में कुपोषित बच्चों का आंकड़ा 75 हजार हाेने के बाद भी अधिकारी 5 हजार 338 बच्चों को ही पौष्टिक आहार मिल पा रहा है। शेष बच्चों को इस योजना का लाभ कब तक मिलेगा स्थानीय अधिकारी इसकी जानकारी भी नहीं दे पा रहे हैं। आंगनबाड़ी केंद्रों में इलाके सभी बच्चे नही पहुंच पा रहे हैं। गर्भवतियों की पहुंच भी आंगनबाड़ियों में 25 फीसदी से कम है।

डीएमएफ फंड के साथ ही दानदाताओं के सहयोग से अंडे बांटे जा रहे हैं। कुछ जिलों में फंड की व्यवस्था नहीं होने के कारण ऐसी िस्थति हुई होगी। सोया मिल्क की जांच कराएंगे। -अिनला भेड़िया, महिला एवं बाल िवकास मंत्री


जानिए हकीकत } शिक्षा विभाग की जांच में भी दूध खराब निकला

दुर्ग में बच्चे सोयाबीन मिल्क फेंक रहे : मुख्यमंत्री अमृत योजना के तहत बच्चों की सेहत के लिए जो सोया दूध भेजा गया, बच्चों ने टेस्ट करते ही फेंक दिया। शिक्षा विभाग ने जब इसकी जांच की तो इस दूध की दूसरी खेप में 30 प्रतिशत दूध खराब निकला। इसकी शिकायत डीईओ प्रवास सिंह बघेल ने लिखित तौर पर रायपुर की। अब भी हर खेप में दूध खराब निकल रहा है।


बालोद में 80% बच्चों की सहमति के बाद भी अंडा नहीं: कुपोषण दूर करने के इरादे से इस साल सरकार ने मध्याह्न भोजन में अंडा देने का आदेश जारी किया था। जिले के 80% बच्चे अंडा खाने तैयार भी बैठे। लेकिन विवादों के चलते इस पर सरकारी आदेश के बाद भी समितियां काम नहीं की। शिक्षा सत्र शुरू होने के बाद भी प्राथमिक शालाओं में बच्चों की थाली में अंडा नहीं पहुंचा। छह माह से ये स्थिति बनी हुई है।


25 % बजट का इस्तेमाल ही नहीं हो पा रहा :  बच्चों की सेहत सुधारन के लिए प्रदेश में पिछले पांच सालों के दौरान जो बजट मिला अधिकारी 25% इस्तेमाल ही नहीं कर पाए। 2014-15 में जहां मिले बजट से 45435 लाख रुपए बच जाने के कारण वापस करना पड़ा, वहीं 2015-16 में 53296 रुपए बच गया। इसी क्रम में 2016-17 में 358730 लाख रुपए का इस्तेमाल नहीं हो पाया।