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छत्तीसगढ़ : संतान की लंबी आयु की कामना के साथ सूर्य को दिया अर्घ्य

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संतान की लंबी आयु और सुख समृद्धि के लिए किए जाने वाला छठ पर्व क्षेत्र में उत्साह के साथ मनाया गया। हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी नदी तालाब के घाट में श्रद्धालुओं द्वारा एकत्रित होकर विधि-विधानपूर्वक पूजा अर्चना की गई। नदी और तालाब के तटों पर इस दौरान महिलाओं की भीड़ दिखाई दी।

शनिवार को नदी और तालाब के घाटों में विधि-विधान से छठ की पूजा की गई। शहर तालाबों और नदी के तट पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु छठ पूजा के लिए जुटे थे। छठ पूजा की तैयारियों में महिलाएं कुछ दिन पूर्व से ही जुट गई थी। अपने घर की साफ-सफाई कर उपवास रखा था। शनिवार को शाम होते ही नदी व तालाब के तटों पर महिलाओं को जुटना शुरू हो गई थी। नदी व तालाब के तटों पर महिलाओं ने विधि विधानपूर्वक छठ माई व सूर्य भगवान की पूजा-अर्चना की।

कौशिल्यादेवी गुप्ता ने बताया कि छठ पूजा की तैयारी कुछ दिनों पूर्व से ही चल रही थी। पहले दिन महिलाओं ने स्नान के उपरांत सुबह पूजा-अर्चना की और इस दिन बिना लहसून प्याज का भोजन किया। इस दौरान विशेष रूप से लौकी व चना दाल की सब्जी बनाई जाती है। दूसरे दिन महिलाएं दिन भर उपवास रहती हैं और रात में गुड़ से बनी खीर के साथ रोटी खाती हैं। आज तीसरे दिन महिलाएं निर्जला उपवास रखकर दिनभर पूजा की तैयारी की। शाम को महिलाएं सूर्य डूबने से पहले नदी व तालाब के तटों पर एकत्रित होकर गंगा माता, छठ माई व सूर्य देवता की पूजा अर्चना कर डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया।

उन्होंने बताया कि यह पर्व माताओं द्वारा पुत्र की दीर्घायु और सुख समृद्धि के लिए किया जाता है। इन माताओं को संतान नहीं होती, उनके द्वारा संतान प्राप्त के लिए यह व्रत रखती है। यह व्रत सुख, शांति और पति को दीर्घायु प्रदान करने वाला भी माना जाता है। अर्चना सिंह ने बताया कि इस पर्व का हिंदु धर्म में विशेष स्थान है। छठ पर्व पर सूर्य देवता की आराधना की जाती है। यह व्रत पारिवारिक सुख- समृद्धि तथा मनोवांछित फल प्रदान करने वाला माना जाता है। उन्होंने बताया कि छठ पर्व पर महिलाएं व्रत रखती हैं।

निर्जला व्रत रखकर महिलाएं शाम को डूबते सूर्य को अर्घ्य देती हैं। इसके बाद फिर अगले दिन सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। छठ पर्व पर व्रत करने वाली महिलाओं को पुत्ररत्न की प्राप्ति होती है। पुत्र की कामना रखने वाली और पुत्र की कुशलता के लिए सामान्य तौर पर महिलाएं यह व्रत रखती हैं। इस दौरान बड़ी संख्या में महिलाओं ने एकत्रित होकर पूजा-अर्चना की।