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यह पौधा करेगा बिना RO के पानी को फिल्टर

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भारत दूषित पानी की समस्या से लंबे अरसे से जूझ रहा है. बदलते वक्त के साथ ये समस्या बढ़ती ही जा रही है. एक तो पानी की कमी ने भीषण संकट के हालात पैदा किए हैं. वहीं दूषित पानी की वजह से पानी होते हुए भी वो पीने लायक नहीं होता. देश में ऐसे कई इलाके हैं, जहां दूषित पानी पीकर लोग गंभीर बीमारियों के शिकार हो रहे हैं. उसमें कैंसर जैसी गंभीर बीमारी तक शामिल है. आमतौर पर दूषित पानी को पीने लायक बनाने के लिए पानी को ट्रीट किया जाता है. घरों में पानी को फिल्टर करने के लिए आरओ लगाए जाते हैं. लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि बिल्कुल प्राकृतिक तरीके से भी पानी को फिल्टर किया जा सकता है. प्रकृति ने खुद ऐसी व्यवस्था की है कि दूषित पानी को साफ किया जा सकता है.

दूषित पानी में कई तरह के जहरीले तत्व मिले होते हैं. लेकिन सबसे खतरनाक है आर्सेनिक. आर्सेनिक इतना जहरीला होता है कि पानी में इसके मिले होने की वजह से कैंसर जैसी भयानक बीमारी तक हो सकती है. देश में कई ऐसे इलाके हैं, जहां आर्सेनिकयुक्त पानी पीने से लोग बीमार हो रहे हैं. खासतौर पर गंगा के मैदानी इलाकों के भूजल में आर्सेनिक पाया जाता है. आमतौर पर ऐसे इलाकों में पानी को ट्रीट करके उसे पीने लायक बनाया जाता है. लेकिन ट्रीटमेंट की प्रक्रिया काफी खर्चीली होती है.

पानी से आर्सेनिक निकालने की एक बिल्कुल प्राकृतिक प्रक्रिया के बारे में वैज्ञानिकों ने पता लगाया है. नए शोध में एक ऐसे पौधे के बारे में पता लगाया गया है, जो पानी से आर्सेनिक को सोख लेता है. पानी से आर्सेनिक निकालने की ये बिल्कुल प्राकृतिक और सस्ती प्रक्रिया है. जादवपुर विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ एनवायरमेंटल स्टडीज ने शोध किया है. शोध में पता चला है कि जलीय पौधा पिस्टिया स्ट्रैटियोटिस पानी से आर्सेनिक सोखने की क्षमता रखते हैं. ये पौधे पानी से बड़ी मात्रा में आर्सेनिक सोख सकते हैं.

रिसर्च में पता चला है कि पिस्टिया स्ट्रैटियोटिस पानी से आर्सेनिक को सोखकर बायोरेमेडिएशन करता है. इसके पौधे के मेटाबोलिज्म में भी बदलाव आता है. ये आर्सेनिक की मात्रा के साथ बदलता रहता है. इसी बदलाव से ये पता चलता है कि पौधे ने कितनी मात्रा में आर्सेनिक सोखी है.जादवपुर विश्वविद्यालय के शोध में कहा गया है कि ऐसे कई जलीय पौधे हैं, जो आर्सेनिक, पारा और फ्लोराइड जैसे पानी में मिले होने वाले जहरीले तत्व को सोख सकते हैं. पिस्टिया स्ट्रैटियोटिस एक ऐसा ही पौधा है. ये बंगाल के ग्रामीण इलाकों में पाया जाता है. यहां के तालाबों, पोखरों और जलाशयों में ये बड़ी संख्या में मिल जाते हैं. इस इलाके में ये पौधे अपनेआप उग आते हैं. जादवपुर यूनिवर्सिटी ने इस पौधे को लेकर शोध किया तो ये हैरान करने वाली जानकारी सामने आई.

दूषित पानी की समस्या को खत्म कर सकता है ये पौधा

जिन इलाकों के पानी में आर्सेनिक की तय मात्रा से ज्यादा पाया जाता है, वहां के तालाबों, पोखरों और जलाशयों में इस पौधे को उगाकर आर्सेनिकयुक्त पानी की समस्या से निजात पाई जा सकती है. शोध में इस बात का भी पता चला है कि कितने दिन में पिस्टिया स्ट्रैटियोटिस ने कितनी मात्रा में आर्सेनिक सोख लिया.

शोधकर्ताओं ने जानकारी दी है कि 10 पीपीबी आर्सेनिकयुक्त पानी से एक पौधे ने 28 दिन में करीब 61.42 फीसदी आर्सेनिक सोख लिया. वहीं पानी में अगर 100 पीपीबी आर्सेनिक मिला हुआ हो तो पौधे ने 28 दिन में करीब 38.22 फीसदी आर्सेनिक निकाल दिया.

पानी से आर्सेनिक निकालने के लिए अब तक पानी को ट्रीट किया जाता है. ये लंबी और खर्चीली प्रक्रिया होती है. लेकिन सिर्फ एक पौधे की मदद से पानी को आसानी से ट्रीट किया जा सकता है.

हमारे देश के भूजल में आर्सेनिक मिला होना एक बड़ी समस्या है. देश के 12 राज्यों के करीब 96 जिलों के भूजल में आर्सेनिक पाया जाता है. वाटर एंड सैनिटेशन मिनिस्ट्री के एक आंकड़े के मुताबिक देश के 1.47 फीसदी लोग पानी में आर्सेनिक के खतरे से जूझ रहे हैं.

इसमें पश्चिम बंगाल का हाल सबसे बुरा है. बंगाल के 9756 इलाकों के भूजल में आर्सेनिक मिले होने की समस्या है. खासतौर से पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद, नदिया, उत्तर 24 परगना, दक्षिण 24 परगना, बर्दवान, हावड़ा, हुगली, कूचबिहार, दक्षिण दिनाजपुर और उत्तरी दिनाजपुर के भूजल में आर्सेनिक होने की समस्या ज्यादा बड़ी है. यहां की जमीन से निकला पानी पीने लायक नहीं होता है. आर्सेनिक तय मात्रा से ज्यादा पाई जाती है. एक पौधा इस इलाके की एक बड़ी समस्या को आसानी से सुलझा सकता है.