छत्तीसगढ़ : रविवि की कार्यपरिषद में उठेगा फर्जी हस्ताक्षर का मसला

पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के सबसे चर्चित पुनर्मूल्यांकन घोटाले में अब तक विवि ने दोषियों पर कार्रवाई नहीं की है। पूर्व कुलपति डॉ .एसके पाण्डेय के कार्यकाल में यह मामला उठा था। मामले में पूर्व कार्यपरिषद ने दो रिपोर्ट में आरोपी प्रोफेसर के दोषी साबित होने के बाद भी कार्रवाई करने की जहमत नहीं दिखाई। तीसरी एक सदस्यीय कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर पुनर्मूल्यांकन प्रभारी को बचाया गया। इतने बड़े फर्जीवाड़े में आरोपी प्रोफेसर को तो बचा लिया गया, लेकिन फर्जी हस्ताक्षर के आधार पर लाखों रुपये की आर्थिक अनियमितता के मामले में विवि ने अभी तक किसी पर कार्रवाई नहीं की। 26 मार्च को एक बार फिर रविवि की कार्यपरिषद में पुनर्मूल्यांकन घोटाले का मामला उठ सकता है। बताया जाता है कि आरोपी प्रोफेसर ने अग्रिम में लिये गये 25 लाख रुपये का कोई हिसाब-किताब नहीं दिया है।

मिनिट्स से ही हटा दिया था मुद्दा

पिछली कार्यपरिषद के सदस्यों में कुलपति और कुलसचिव ने पुनर्मूल्यांकन घोटाले के मामले में जबलपुर के एक कॉलेज की प्रोफेसर शिवानी बासु का नाम आने के बाद इसे हटा दिया था। बताया जाता है कि इस मामले को दबाने के लिए कार्यपरिषद की मिनिट्स कार्रवाई से अचानक बासु का नाम हटाया गया था। अब एक बार फि सह समन्वयक शिवानी बासु का नाम सामने लाया जा सकता है। गौरतलब है कि साल 2016 में बीकॉम की कॉपियों का पुनर्मूल्यांकन कराने की जिम्मेदारी संभाल रहे प्रोफेसर व्यासनारायण दुबे पर गड़बड़ी करने के आरोप हैं। इस मामले में उन्हें निलंबित भी किया जा चुका है। बताया जाता है कि बिना कॉपी जांचे ही छात्रों को नंबर दिया जा रहा था।

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